सिसकियां गूंज रही थी उस कमरे की दीवार पर!
एक बेटी विदा हो रही थी, फूलों से सजी अर्थी पर!
दुनिया कह रही है मामला ज़रा नाज़ुक सा है,
खरोच नहीं है बदन पर, मामला जख्मी दिल का है!
जिस मा को अगली रात कम्बल ओढ़ाए सो गई,
अगली सुबह वोह ही सीढ़ी से गिरकर मौत की नींद सो गई!
मा की हालत कोई समझ नहीं पाया होगा,
इतना मासूम बच्चा कैसे उसे छोड़ कर जा पाया होगा!
बड़े भाई की तो आवाज़ सी नहीं निकल रही,
बूढ़ी दादी तो बच्ची को देखकर ही सेहम् गई!
तुझे अपनी हाथो से हल्दी लगाकर विदा करूंगा,
वोह मामा भी आंसू में हल्दी भिगोए चीख रहा!
मा मांग रही खुदा से, छीन ले मेरा सबकुछ दे मुझे बेटी मेरी!
ताउम्र तेरी इबादत की है, यह सौदा इतना भी मुश्किल नहीं!
बाप टूट रहा अपनी नन्ही कलि को मुरझाता यू देख कर,
तेरी बिदाई डोली में करनी थी, अर्थी तो मैने सोची ही नहीं??
कंधे तो फिर भी चार थे, बस बेकाबू से हालात थे!
आंसू तो फिर भी सब की आंखो में इतने ही थे, खुशी का घोल क्यू नहीं??
ऐसी कैसी यह बेटी की बिदाई हो रही????
उम्र से पहले छोड़ कर ऐसे कैसे चली गई,
नहीं नहीं! कहीं ये खुद का खून तो नहीं कर गई??
वक़्त के उस केहर पर भी लोग चार थे,
जिनके इस दुख पर बात करने के भी अलग अंदाज थे!
बाली उम्र में ही हल्दी में सजकर कर वोह चली गई!
हस्ता खेलता वोह मायका अपना सुना सा कर गई!
सवाल तो उसे भी करने होंगे हर वोह सख्स से?
मौत पर मेरी, मेरे दामन पर सवाल तुमने क्यू कसे??
मुझे भी विदा होना था डोली में, चार कंधे भी चाहिए थे लेकिन खुशी के!
मा! तेरा लड़कपन बोहत् याद आएगा,
जानती हूं मेरा भोलापन तुझे बोह्त रुलाएगा!
मा बाबा की आंखे बस एक यह ही सवाल कर रही,
तुझे जाने से पहले अलविदा तक कहने की फुरसत नहीं??
( कुछ अपनों को श्रद्धांजलि देने का कोई सही तरीका ही नहीं होता!
शायद इसीलिए क्युकी उनके छोड़ जाने का सही वक़्त नहीं होता।।।)