रूह से निकले लफ्जों की वजह होती है
रूह से निकले लफ्जों की वजह होती है
रात की वीरानियों में भी इक जगह होती है ,
होती नहीं क्यूं नफ़रत , मुझे अपनी ही परछाई से
ये परछाई ही तो मेरे वजूद की नकल होती है ।
दंभ और हिंसा का लिये फिरते हैं बोझ
इसी बोझ तले जिन्दगी फना होती है ।
मुझको वो मिला सफर के उस वीराने में
जहाँ मेरी हेवानियत मुझसे रुबरु होती है ।
दुत्कारता है जब कोई मुझे मेरी परछाई के साथ ,
हैवानियत मेरी बेशर्म इक नई कहानी लिखती है ।
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा , मो : 9911127277