रात्रि रचना
गुज़र गई वो रातें,
जगा रोशनी हुआ करती थी।
अब तो जिंदगानी में
अंधेरे का बसेरा है।
वक्त है एक चक्र सा,
फिर से लौट के आएगा।
आज जो काली रात है
होना कल सवेरा है।
वो केहते थे तुम कुछ नहीं,
में केहता था तुम हो सही।
राख के जैसा हूं में
सब से ऊपर उठता रेेहता।
तुम जितना मुझको कोसोगे,
में उतना निखरके आऊंगा।
काबिल बन कर आऊंगा
तब होगा कल वो मेरा है।