खुद ही को हम, खुदा मान बैठे थे
जिससे सरोकार नहीं कोई , उसे भी अपना जान बैठे थे
बेइंतहा मोहब्बत की तुझसे ऐ जिंदगी
बेवजह ही तुझे, पाने की जिद ठान बैठे थे
तू तो कभी अपनी, थी ही नहीं
मुझे कभी अपने आगोश में ली ही नहीं
ये कैसी नादानी और मदहोशी थी मेरी
तूने तो कभी, मेरे दर्द की कीमत समझी ही नहीं
............ ✍️ पुष्पा शर्मा