सुरक्षा कवच'
ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
मोहल्ले के सफाई कर्मी बासु ने सुबह आठ बजे कचरे की
खाली ट्राली को निर्धारित स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया
और स्वयं सड़क की सफाई करने लगा। उसके चेहरे पर काले रंग का मास्क लगा हुआ था और हाथों में मोमजामे के
दस्ताने चढ़े हुए थे।
दस्तानों को देखकर उसकी स्मृति ताजा हो गई । आज वह घर से बाहर निकलते समय जल्दी-जल्दी में अपने मुँह पर मास्क लगाना भूल गया था। दस -एक कदम ही आगे बढ़ा था कि उसकी दस वर्षीय बेटी श्यामा पापा-पापा पुकारते हुए उसके पास आई और मास्क व ग्लोव्ज उसके हाथ में देते हुए मुस्कुरा कर बोली , " ये लो पापा, आपके सुरक्षा कवच।इन्हें धारण करो।फिर निश्चिंत हो कर अपना कर्म करो। जन -सेवा करो।दुष्ट कोरोना आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। परन्तु मैं महसूस कर रही हूँ कि आजकल आप बड़े भुलक्कड़ होते जा रहे हैं।" शिकायत भरे अंदाज में उसने मिठास से कहा था।
उसकी बात का आशय समझते हुए बासु ने भी प्यार से कहा ,
"हाँ मेरी एक समझदार बिटिया जिसका नाम श्यामा है मेरा ध्यान जो रखने लगी है। "
"नहीं पापा,मेरी बात को यों मज़ाक में मत उड़ाओ। यह जीवन और मरण का सवाल है ।कोरोना बहुत भयंकर वायरस है। इसे हलके में नहीं लेना चाहिए।अपनी सुरक्षा का पूर्ण ध्यान रखना
चाहिए। "
"सॉरी बिटिया, आगे से मैं पूरा ध्यान रखूँगा। तुझे शिकायत का बिल्कुल भी मौका नहीं दूँगा। यह कहकर उसने अपने मुँह पर मास्क और हाथों में दस्ताने चढ़ा लिए थे। और ड्यूटी पर जाते हुए फिर उसने बड़ी आत्मीयता से कहा था, "बिटिया निश्चिंत हो कर अब तुम घर जाओ। मैं लोगों से निश्चित दूरी भी बनाए रखूँगा। निश्चित दूरी की बात ख्याल में आते ही वह मानो सोते से जगा,देखा वह मोहल्ले में अपनी ड्यूटी पर तैनात था।
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ज्ञानप्रकाश 'पीयूष' आर.ई.एस.
पूर्व प्रिंसिपल,
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