#काव्य१ - देखो ! क्या साल आया है , संग भयावह महामारी का उपहार लाया है।
त्रासदी को बुनकर अपने झोले में,
इन्सान को चेताने आया है।
देखो! क्या साल आया है।
वैश्वीकरण के इस युग में, 'सोशल डिस्टेंसिंग' एक शस्त्र बना है।
आज मानव जाति को बचाने,
सम्पूर्ण राष्ट्र का वर्चस्व लगा है।
निज स्वार्थ का त्याग सीखाने आया है,
देखो! क्या साल आया है ।
यदि मानव जाति को बचाना हैं ,
तो लॉकडाउन का पालन करना होगा ।
पूरा देश ही ग्रीन जोन में हो ,
ऐसा संकल्प धरना होगा ।
अनुशासन का पाठ पढ़ाने आया है,
देखो! क्या साल आया है।
क्या कमी रह गई थी बीते कुछ सालों में ,
सुधार का हमें मौका देने आया है।
कलयुगी गल्तियों को सुधारने हेतू,
सतयुगी जीवन शैली भेंट करने आया है।
इन्द्रियों को वश में कैसे करें बताने आया है ,
देखो! क्या साल आया है ।
विडंबना देखो, इंसान चारदीवारी में कैद हुआ । पंछियो की चहचाहट में ,
पूरा वातावरण सराबोर हुआ।
अब 'ऑड ईवन' की जरूरत नहीं,
प्रकृति स्वयं ही प्रदूषण मुक्त हुई है ।
स्वछंद हवा के गीत गाने आया है,
देखो!क्या साल आया है ।
धर्म , जाति की लड़ाई से ऊपर उठकर ,
राष्ट्रहित को सिद्ध करना,
मृत इंसानियत को परोपकारिता से जीवित करना,
निज हितों को भूलकर , मानव जीवन की रक्षा करने वाले,
'योद्धाओं' से साक्षात्कार कराने आया है ,
देखो! क्या साल आया है।
इस साल से तो कुछ सीखना होगा,
वसुधैव कूटूम्बकम् व मानवता ,
के सिद्धान्तों पर चलना होगा।
गर भावी पीढ़ी को सुखमय जीवन देना है,
तो आत्मीयता से आज चिंतन करना होगा ।
इसी चिंतन से रुबरु कराने आया है ,
देखो! क्या साल आया है।
मानसी शर्मा