|| ग़ज़ल ||
कायदा है ग़ज़लों का कि वो अपनी बहर में रहें ।
अंदेशा आँधियों का है परिंदे शजर में रहें ।।
तुम भी हो मुसाफिर जहान में हम भी हैं मुसाफिर ।
तकाजा वक्त का है कि कुछ दिन अपने घर मे रहें ।।
बहुत दूर रहे हम घर से, घर बसाने के खातिर ।
गुजारिश बच्चों की है की अब उनके नजर में रहें।।
आंधियों की दावत पर ये अंधेरे आये हैं ।
जलता हुआ चिराग एक छत पर शहर में रहें ।।
कोई विषपान न कर ले बनो "अवधेश"तुम शंकर ।
हवा में घुल रहा है जो कहर वो विषधर में रहें ।।
...डॉ.अवधेश कुमार जौहरी