औरत...सिर्फ़ शब्द नहीं..एक महान ग्रंथ है,
जिसमें मिलते वो हर विलक्षण गुण...जो सिर्फ़ भगवान में है ।
औरत से ही दुनिया...उसी से सृष्टि का आरम्भ है,
जिसमें मिलती आकर करुणा की सागर...उसी से जन्मता त्याग है ।
ईश्वर भी जिसके बिन है अधूरा..वो शक्ति और लक्ष्मी का अवतार है ,
ख़ुद भगवान भी लेते जन्म जिस प्रेम को पाने को..वो ममता मिलती ‘माँ’ में है।
एक औरत..जो कई रूप समेटे ख़ुद में..हर किरदार निभाती है,
कभी माँ बनकर पुचकारना तो कभी पत्नी बन साथ निभाती है ।
औरत...सिर्फ़ शब्द नहीं...एक महान ग्रंथ है ।।
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-A A Rajput ‘अक्श’