इन हवाओ को कह दो के तुम्हें छू कर मेरे घर न आए ,
तेरी ख़ुशबू को ये मेरे ज़हन से भूलने नहीं देते ,
तू रोक सकती है इन्हें...तो बहाना मत बनाना,
मैं जानता हूँ........
इश्क़-ए-समंदर को तूने अल्फ़ाजो से रोका था ,
मैं जानता हूँ.......
और हाँ....;
एक आख़री मर्तबा मेरा एक काम कर दे
इन आँखो को मेरी हुआ क्या है...बस मर्ज़ बात दे ...
तेरे चेहरा हर किसी में दिखता है...
कोई दवा हो तो बस आख़री बार बता दे ......
- A A राजपूत ‘अक्श ‘