हेतु मेरे अहेतुक बनाने को तुम,
खुद को भी तो सँवारो कभी तो कहीं..
हम खँगालेगें फिर तुमको अंदर तलक,
मंथनों में उजागर करो कुछ कहीं ....
वाद हर पल प्रयोजित है भीतर मेरे,
स्वर्ग तृष्णा के तुम ही विषय हो सभी .....
फिर निमंत्रण लिये मन खड़ा रेत सा ,
उतरो चर्चा में मेरी कभी तो सही ....
वार तो दें तनिक अंश अपना मगर ,
तुम तमस छोड़ रघु तो बनो फिर सही ।।