तुम पराजय से बन आयु भर साथ हो ,
रत प्रतीक्षा में हर इक विजय है खड़ी ,
रथ बिना सारथी हाँ भटक जाता है ,
पर लगी थी पताका तेरे नाम की ,
जो भरी मंद हुँकार रणक्षेत्र में ..
बाण धनुषों की टंकार विन्यास पर ।।
अश्रुपूरित वचन पूर्ण हो जाते तो ,
युग समापन सा होता बिना चाहते ,
मन मना करके भी भागता तुम तलक ,
मारना मन दोबारा उचित होता क्या ??
सब मुखर से मनन चिंतनों में रहे ...
वाद अंतिम रहा शेष फिर तुम ही पर ।।