सारे वाक्यों में तुमको ही मानद बना ,
स्वर्ण अक्षर जड़े हैं तेरे शीर्ष पर ....
हर इकाई को इक पुण्य मानक बना ,
जग कथा कह गया है तेरे इर्ष्य पर.....
जो विभाजन द्रवित कर गया था हमें ,
साक्ष्य में भूमि सी श्रृंखला तुम रहे .....
हस्त खाली कहाँ भेजते जब स्वयं ,
धाम बन तुम खड़े हो मेरे तीर्थ पर ।।