अलमारी खुली अटैची खुली पड़ी थी,
बस बंद थी दीवारें उस घर की जो शायद कभी न खुलने वाली थी,
टकरा टकरा कर बंद हुए उस दरवाजे में उस घर की खुशियों की उंगली आ गई,
तड़प तड़प कर मर गई खुशियां, न कोई रोग था न बुरी आदत थी,
छोटे-छोटे चार मटके थे कोने में पानी से भरे हुए,
जो कभी भी बहने को तैयार थे,
सफेद साड़ी में चिंगारी रो-रो कर सूख चुकी थी,
एक सेतू था उस बड़े मकान से इस झोपड़ी तक जो टूट गया अंधेरे में,
वह गलती सही में कर्मचारी की थी सरकारी,
पर भुगत रही थी बस वह अकेली चिंगारी।