एक उम्मीद सी सुबह।
ढ़लते सूरज औऱ उगते
सूरज के बीच दिखे सपनों
को पंख देती सुबह।
सूरज निकलतें ही,
निकलती एक हुफ,
कल से आज बेहतर बनाने की।
आँख में रोशनी भर के उड़ाने की,
कुछ कर गुजरने की सुबह।
जीवन का मोल समजाती।
किरन जैसे सुबह वो कितनी
अदब से निकलती हैं और साम
होते होते ढल जाती हैं।
-मिलन