Hindi Quote in Poem by Divyanshu Kumar

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टूट के रह गए हम उस गुलाब तक पहुंचने में काँच के जैसे
जो छूने को हाथ बढ़ाया, कहा काँटो ने, "ऐसे कैसे",

रात भी आमादा थी दिन पर हावी होने को,
शामों ने कहा जरा ठहरो ! "ऐसे कैसे"

कोशिश तो लाख की दरिया पार करने की,
गुस्ताख़ गहराईयों ने कहा पर "ऐसे कैसे"

मिलनी थी मंजिल यूँही, हुनर खूब था मुझमें
पर हाथो की लकीरों ने फरमाया, "ऐसे कैसे"

वक़्त मुसल्सल बदलता है, मेरा भी बदलेगा,
दिवार पर लगी घड़ी रुक गयी, बोली, "ऐसे कैसे"

हारे आशिकों के फेहरिस्त में नाम जोड़ने में लगे थे वो,
दो घूँट लगा हमने भी कहा रुको! हार जाए हम "ऐसे कैसे"....

Hindi Poem by Divyanshu Kumar : 111235165
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