अपनी तनहाई का, आलम अजीब है यारो।
दूर नज़रों से है, जो दिल के करीब है यारो।।
चाहता हूं जिसे, वो ही बिछुड़ता जाता है।
आजकल गर्दिश में, अपना नशीब है यारो।।
मोहब्बत में हमेशा, दर्द हमने पाया है।
इश्क़ अपने लिए, जैसे सलीब है यारो।।
दिल जिसे देता हूँ अपना, वो तोड़ देता है।
जमाने में ना कोई, अपना रकीब है यारो।।
मान ले 'सागर' चाहत, एक बुरी बीमारी है।
सबको लग जाती है ये, श: अजीब है यारो।।
©नृपेंद्र शर्मा "सागर"