शशि कर हास ललाट जटा बिच राजति गंगा
वृश्चिक कुण्डल कान भभूति बदन मन चंगा
गले मुण्ड की माल व्याल कर शूल विराजे
नर्तन करती प्रकृति शम्भु डमरू जब बाजे
शिव अभिषेक उमंग छटा अम्बर लहराये
करत सृष्टि सिंगार जटा शंकर विवराये
सावन बरसत मेघ केश शिव थामे गंगा
हँसत हरित तृन भूमि हिलोरत गंग तरंगा
Kuber Mishra