वर्षा ऋतु सौन्दर्य
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दिनमान प्रचंड प्रकोप घटा।
बादल जल धार पयोधि सटा।।
शशि शेखर नृत्य उमंग उठे।
लहरात छटा नभ शम्भु जटा।।
सावन जल थल सम भाव पटा।
घहरात घटा कहुँ मेघ फटा।।
सर पोखर सब लहराय उठे।
उतरी सुरपुर की दिव्य छटा।।
दादुर जल कुक्कुट झींगुर रव।
तरु पालव कोंपल रति अभिनव।।
छवि दृश्य अलौकिक भूमि जगे।
बरखा ऋतु गीत पुनीत विभव।।
लहरात तरंगिणि धार चली।
जलनिधि हिय प्रेम पुकार फली।।
तटबंध झकोरत बोरत सब।
प्रियतम आलिंगन धाय मिली।।
पछुवा पुरवा पुरजोर बही।
घन गर्जन तर्जन शोर मही।।
विचलित मन काम लगाम कटे।
मनसिज निज स्यंदन डोर गही।।
कुबेर मिश्रा