काव्योत्सव2.0
#मधुआस
कलियों ने भौरे से पूछा,
आओ जी क्या सुन रहे हो,
किसको नजरें ढूंढती हैं,
मन ही मन क्या धुन रहे हो,
किसको नजरों में बसाए,
घुमते पगडंडियों पर,
किस कली की आस में तुम,
मन ही मन कुछ बुन रहे हो।।
भौरे ने तब ये कहा,
ये प्यार की शुरुआत है,
खुशबू मिल जाये,
हमारे दिल में बस ये प्यास है,
प्यार में लिपटी शहद की,
बस्तियों को चुन रहा हूँ,
बस इसी उम्मीद के पल,
मन ही मन मैं बुन रहा हूँ।।
बेवफा हो तुम सुना है,
हर घड़ी मन बदलते हो,
मन ये चंचल है तुम्हारा,
हर कली पर मचलते हो,
रूप के सौंदर्य का रस पी,
लगा है झूम रहे हो,
किसको नजरें ढूंढती हैं,
मन ही मन क्या धुन रहे हो।।
-राकेश सागर