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कफन
चाहे लिबास हो पुराने।
पर नया साज तो हमारे पास है।
हम वो काला उगलता सोना है ।
जो शमशानमे तपकर निखरता है ।
देना सीखा हमने।
लेना अब हमारी फ़ितरत नही है।
हम वो बडे दिलवाला सागर है।
हर झरना सैलाब जिसमें बहता हैं।
अपने हो या पराये।
हमारी पहचान ना कोई जाने।
जबसे दिन क्या हमारे बदल गए।
लगी परछाई भी अपना दामन छोडने।
लोग कहते हैं शायरोंके
अच्छे बुरें सारे पल बदलते है।
अपनोमें छिपे बेगाने।
बेगानोमें अपने साफ नजर आते हैं।
कहते हैं लिबास जिसे।
उसे कफन कहा जाता है।
सुन ग़ालिब! एे खुदा मेरे ।
दुनिया का क्यों ये अजीब दस्तूर है।
© म.वि.