#काव्योत्सव_भावनाप्रधान_कविता
#मुझे_भी_दर्द_होता_है
जी चाहता कभी कभी
तोड़ दूँ सारी वर्जनाएँ
और चिल्ला कर कहूँ
हाँ ,मैं भी तो इंसान हूँ
मुझे भी दर्द होता है...
क्षमता है मेरी जरूर
सहने की, परन्तु फिर
सीमा भी तो होती हैं
हर एक एहसास की
मुझे भी दर्द होता है...
मानुष हूँ साधारण सा
कोई देव योनि से नही
ना कोई पाषाण हूँ मैं
सहता रहे जो ठोकरें
मुझे भी दर्द होता है...
आवाज रुंद जाती है क्यों
जब जब इंतहा होती है
प्रताड़ना और अवहेलना
खामोश कर देते हैं क्यों
मुझे भी दर्द होता है....सीमा भाटिया