#काव्योत्सव -2
भावनाप्रधान कविता
ऋतुराज बसंत
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काश कोई वक्त की पहिया थमा देता
तो ऋतुराज बसंत अलविदा ना होता
कोकिलों की कुहुक, भ्रमरों की गुंजार
आमों की मंजरियाँ, टेसुओं की बहार
धरती का यौवन कभी कम ना होता
काश कोई वक्त की पहिया थमा देता
तो ऋतुराज बसंत अलविदा ना होता
नव पल्ल्व, नव उमंग, नव जीवन,
स्फूर्ति, जोश, मादकता से भरा मन
प्रीत और मनुहार कभी ख़त्म ना होता
काश कोई वक्त की पहिया थमा देता
तो ऋतुराज बसंत अलविदा ना होता
कोमल कपोलें और सुगन्धित हवाएं
ओढ़ी पिली चुनरियाँ मन को बहकायें
फागुन का रंग कभी मद्धम ना होता
काश कोई वक्त की पहिया थमा देता
तो ऋतुराज बसंत अलविदा ना होता