ख्वाब तुम्हारी आंखों में
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गीत लिखूँ
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पुलकित रोम-रोम में
कोमल हृदस्पंदन में
उदृदाम भावावेग में
जब याद तुम्हारी आये
तो मैं गीत लिखूँ।
मन फागुन-फागुन हो जाये
मदमस्त पवन दुलराये
आम्र मंजरों में छिपकर
जब कोयल कूक सुनाये
तो मैं गीत लिखूँ
डोले गेहूं की बालियाँ
अंकुराए मन की क्यारियाँ
रससिक्त-नवकुसुमित कलियाँ
जब भ्रमरों को ललचाएँ
तो मैं गीत लिखूँ।
उन्मीलित नयनों में गोरी
मनमोहक स्वपन सजाए
मीठी यादों में खो कर
जब मंद-मंद मुस्काए
तो मैं गीत लिखूँ।
कुम्हलाए शरद-से मन में
छिटकीं सूरज की रश्मियाँ
पा अहसासों की ऊष्णता
जब मन-सरोज खिल जाये
तो मैं गीत लिखूँ।
- विजयानंद विजय