ऐ ज़िंदगी इतनी भी रुठा ना कर ,
अब हाल बेहाल है तुजे पाकर।
कुछ तो लम्हें दे इन लकीरों से;
अब मुस्कुराना भी पड़ता है आंसू छुपाकर।
सहेलाब सा ये आसमान है,
कुछ तो बता तेरे क्या अरमान है?
दर - दर रूह भटकती है अब -
खुशियों को ही ढूंडती है आंखे जब ।
ना लब्स निकलते है तूजे बया कर ने में,
ना दिल बहलता है तुझे अनसुना करने में।
ऐ ज़िंदगी बस अब इतनी भी रुठा ना कर,
ये हाल बेहाल से है अब तुजे पाकर।