दोस्त! मैं देख चुका ताज-महल
.....वापस चल
मरमरीं मरमरीं फूलों से उबलता हीरा
चाँद की आँच में दहके हुए सीमीं मीनार
ज़ेहन-ए-शाएर से ये करता हुआ चश्मक पैहम
एक मलिका का ज़िया-पोश ओ फ़ज़ा-ताब मज़ार
ख़ुद ब-ख़ुद फिर गए नज़रों में ब-अंदाज़-ए-सवाल
वो जो रस्तों पे पड़े रहते हैं लाशों की तरह
ख़ुश्क हो कर जो सिमट जाते हैं बे-रस आसाब
धूप में खोपड़ियाँ बजती हैं ताशों की तरह
दोस्त मैं देख चुका ताज-महल
.....वापस चल
कैफ़ी आज़मीwish