आंसू जॉ बेह ना सके,उन्हें लफ्ज़ बना कर हमने कागज़ में कैद क्या किया,
तूम समज बेठे हम गवार से शायर होगये!
ज़िंदगी निकल गई अपनों के बोज़ उठा उठा कर,थोड़ासा आराम क्या किया,
तुम समज बेठे हम मेहन्तु से कायर होगये!
ये तो गुरूर थे अपनों के जिनको संभाल ने के लिए हमने उन्हें जुकके सज़दा क्या किया..
तुम समज बेठे हम नास्तिक से नमाज़ी होगये!
आज तक कठपुतली बने थे अपनों के,अपनी डोर को हमने हाथ में क्या लिया..
तुम समज बेठे हम बन्दर से मदारी हो गए!
गम के मारे थे हम,दर्द ने हमे बर्बाद क्या किया,
तुम समज बेठे हम अच्छे भले इंसान शराबी हो गए!
Anv◆