हाय, मातृभारती पर इस कहानी 'आधी नज्म का पूरा गीत - 3' पढ़ें
उनके लेखन की प्रमुख विशेषता यह है कि उसमें स्त्री मन को, उसके दर्द को, उसकी भावनाओं को भरपूर अभिव्यक्ति मिली है। स्त्रीवाद के जितने भी पहलू हैं, वे सभी उनकी रचनाओं में मौजूद हैं। उनके यहाँ स्त्री अबला नहीं बल्कि सशक्त नारी के रूप में दिखती है जो परिस्थितियों से हार नहीं मानती है और स्वयं के साथ दूसरों का जीवन भी सँवारती है, यही तो है पारिस्थितिक स्त्रीवाद की अवधारणा जहाँ अमृता की रचनाओं की नायिकाएं स्वयं को सार्थक करती हैं।
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