चंद सिक्कों में, रही ज़िन्दगी
बन्द बोतल में, बंद है ज़िन्दगी
बड़ी ग़मज़दा, बड़ी है थकी
टिफ़िन के संग चल रही ज़िन्दगी
बस्तो किताबों के बोझ से दबी
बिखरें पन्नों में मसल रही ज़िन्दगी
खिड़की झांकती है भीतर मेरे
दर पे ताले सी जड़ी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी ने है पूछा ज़िन्दगी से
क्या अब असल में रही ज़िन्दगी
~आला चौहान"मुसाफ़िर"