बातें मन के अंधेरों में ,
चादर ओढ़े ही रहती हैं
कुछ ख्यालात अधूरे से
कुछ चाहतें अनकही सी
हवा सर्द के झोकों में
गरम देह की ज्वालों में
उलझती सी हमेशा रहतीं हैं
वो क्या असर, वो क्या भँवर
क्या वो आंधी , वो क्या सफर
हिल मिल के जीवन को अमर
कर पाएंगी, ऐ हमसफ़र
बस कह दे तू , ऐ हमसफ़र
ऐ हमसफ़र , ऐ हमसफ़र !!!
बातें मन के अंधेरों में ,
चादर ओढ़े ही रहती हैं