मधुशाला
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला
किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह
भोलाभाला
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता
राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा
मधुशाला
एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो
दिन को होली रात दीवाली रोज मानती मधुशाला
दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती
मधुशाला
मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका
पायला
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी
हाला
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते
बैर करते मंदिर मस्जिद मिला देती है मधुशाला
मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला
मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला,
मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना
राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।८२।
मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला
हरिवंश राय बच्चन