हम चलते रहे वो रस्ते पर किसी मोड़ पर तु मिल जाये शायद,
बन गये मुसाफिर सोचतेथे तेरे हमसफ़र बनजाये शायद,
हर रास्ते हर गली हर महोल्ले में खोजती रही निगाहे की कहिपे तो तु टहलती हुई मिलजाये शायद,
कटते गये लंबे रास्ते छुट गऐ कई मोड,
थके लड़खडाये थीरथीराये पैर फिरभी हम चलते रहे खुदसे तेरी ओर,
बहोत से मौसम गुजर गये सफर में,
कभी इंतज़ार भरी आँखोंकी बारिस,
कभी इंतज़ार भरी धुप सी तड़पन,
कभी इंतज़ार से बिखरती आशाओ सी पतझड,
कभी शर्दी में गरम चादर सी तेेरी बाहोमे लपेट ने की चाहत,
फिर तेरी आँखों में खोजाने की चाहत,
फिर तेरे होठो का मेरे होठो को छूना,
फिर तेरे साँसों की वो गर्माहट,
फिर तेरे कंधे पे शीर रख के मेरा यू रोना,
हर मौसम में ऐशे कई सपनो को बुनना,
हर सपने में एकही इबादत कोई एक सपना तो होजाये सच शायद,
हम चलते रहे वो रस्ते पर किसी मोड़ पर तु मिल जाये शायद।।