कविता - लड़कियां पटा रही है
#kavyoutsaV
लड़कियां पटा रही है बूढ़े और मुस्टंग.
कुंवारे युवा देख कर, रह गए दंग.
अजग—गजब का हो रहा है खेल,
बिगड़ रहे रिश्तें और संबंधों के रंग.
होगी कैसे जंग ? समझ न मझ को आया ?
टिमटिमाता दीपक और आंधी की छाया.
कौन—कितनी देर रूकेगा इस में
जलती अग्नि में वर्षा की है माया.
वर्षा की है माया, समझ न आए ढंग.
ये टीआरपी का खेल है या राजनीति का रंग.
बूढ़ेयुवा मिल कर खेल रहे है खेल.
मैं इस की हो ली, होली किसी ओर के संग.
होली किसी ओर के संग, कहे कविराय.
चलतेचलते रास्ते करती लड़की बायबाय.
बॉय से बॉय मिले तो हो जाए शादी.
कैसे बाग खिलेगा बढ़ेगी कैसे आबादी हाय.
बढ़ेगी आबादी हाय, माता किस को कौन कहेगा ?
लड़केलड़की में से पिता कौन रहेगा ?
बिगड़ा ये पर्यावरण के रिश्तों को प्रदूषण तो
संस्कार का दोषी कौन किसे कहेगा ?
कौन किसे कहेगा ? छोड़ो यह उल्टीसीधी रीत.
माता को माता रहने दो और उस की प्रीत.
तभी बढ़ेगा आपस में प्रेम, प्यार और मनुहार
इसी से मिलेगी मातपिता और मानव को जीत.