Hindi Quote in Shayri by Vinod Dhrabial Rahi

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गौरेया:

गौरेया !
बचपन की नन्ही दोस्त
नज़रों से ओझल हो
कहाँ हो तुम......
मुझसे नाराज़ हो क्या?
अनगिनत यादें हैं तम्हारी
मेरी धुंधलाती आँखों में
पूरा बचपन बिताया
तुम्हारे साथ खेलकर
तुम्हारा फुदकना मेरे आँगन में
भूलने की बात है भला
आह !
मैं बिखेरता चावल के दाने
तुम चुगती थी चौकन्नी,
खेल ही खेल में
मैं फैंकता था तुम पर
झूठ-मूठ के पत्थर
तुम उड़ जाती 'फुर्र....'
हंसाती, लोटपोट कर देती,
कई बार टोकरा-रस्सी बाँध
पिंजरा बना कोशिश की
तुम्हें पकड़ने की
परंतु तुम गज़ब की चतुर
कभी हाथ नहीं आई
न ही नाराज हुई
दोस्त की इस दुष्टता पर
आती रही बार-बार, रोज
मेरे आँगन मुझसे मिलने
गौरेया !
आ जाओ फिर एक बार
मेरे आँगन में
दोहराऊंगा नहीं
बचपन की दुष्टता ,
कहाँ हो तुम......
कहीं जाने-अनजाने में
बन तो नहीं गई
तुम मेरा ही शिकार|
..............
विनोद ध्रब्याल राही

Hindi Shayri by Vinod Dhrabial Rahi : 111032762
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