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Surendra Kumar Arora

Surendra Kumar Arora

@surendrakumararora171825
(16)

#लापरवाह
कविता

चीन को उसकी औकात का आयिना मेरे देश के वीर सपूतों ने दिखाया है ,
कहता था खुद को शेर , चूहा उसको मेरे रनबांकुरों ने बनाया है ।

बात अधूरी है अभी , अक्साई चिन का फ़लसफ़ा भी उसको समझाया है ,
गलती से फिर भविष्य में करी कोई हिमाकत कभी इस मक्कार ने ,
तो गलवान का सबक उसके लिए गहराया है ।

नमन हिन्द की सेना और जवानों को ,
उनके ही दम पर देश ने स्वाभिमान अपना फिर से पाया है ।
जो करना है अखंड और समृद्ध भारत का निर्माण तो मेरे देशवासियों ,
करना होगा तुम्हें त्याग और ईमानदारी के संकल्प का यशो गान ,जैसे कोई सरमाया है ।

भूल जाओ भेद अपने , मां भारती को प्रणाम करो ,
इसके लिए सर्वस्व समर्पित ,एसा कुछ प्रयास करो ।

बने जो लापरवाह इस कुटिल खेल में ,
तो खो जाएगा देश सिकुड़ कर इतिहास की रेल में ।



सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
साहिबाबाद ।
#लापरवाह

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#उग्र

वीरों की धरा पर मुझे ये वरदान चाहिए
जयचंदों से रिक्त मुझे मेरा देश चाहिए।

आजादी के नाम पर षड्यंत्रों का दुत्कार चाहिए
मजहब की आड़ में विघटन का तिरस्कार चाहिए।

उपरवाले के नाम पर बढ़ती हुई आबादी से
हर शख्स का जिम्मेदारी भरा विशवास चाहिए।

न भूख चाहिए,न शोषण या अत्याचार चाहिए
मुझे मेरे भारत में विस्थापन का विनाश चाहिए।

जाती - द्वेष को भूलकर समरसता भरा प्यार चाहिए
मुझे मेरे देश में सभी को न्याय का विस्तार चाहिए।

अपराधों की दलदल में नर - नारी के संस्कार चाहिए
आत्म संपंन्न भारत में संतुष्टि का उपहार चाहिए।

मुझे मेरे देश में हर उत्पाद की बहार चाहिए
मुझे मेरे देश में हरेक को रोजगार चाहिए।

शत्रु के मान मर्दन का जन - जन में जयघोष चाहिए
अखंड मेरे भारत का विश्व में सम्मान चाहिए।

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा ,
डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन, साहिबाबाद - ग़ज़िआबाद , पिन : 201005 ( ऊ.प्र. ) मो: 9911127277

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यादें

पत्थरों से घिरकर भी शांत चेहरे को ओढ़कर ,
आईने सी चमक बिखराती हो ।
ये तो बताओ कि धैर्य के थाल में संचित यह पूंजी
किस धरा से छीन कर ले आती हो ।

भावनाओं को यूं ही कोई , सहज कैसे दबा सकता है ,
अपने ही ह्र्दय को कोई कैसे बरगला सकता है ?

झील के गर्भ में भी लहरें अंगड़ाई लेती हैं ,
रुके हुए बादलों में भी बिजली की चमक दिखाई देती है ,
कठोर - ऊँचे पर्वतों पर भी व्रक्षो का झुरमुट रहता है ,
सीना उनका चीरकर ही जल , सरिता का बहता है ।

उतरती हैं किरणें जब पेड़ों की पत्तियों पर ,
नूर सूरज का जैसे चेहरे पर तेरे छा जाता है ।

देखा है किसने ढकी हुई चांदनी को बादलों के उस पार ,
मैंने तो अपनी अँधेरी रातों को तेरी यादों से सहलाते हुए बिताया है ।

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
साहिबाबाद ।

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#शांतिपूर्णकभी हवा खराब का रोना
कभी पानी की कमीं की चीख,
ये तो बताओ कि तालाब कौन लील गया या
अवैद्य कब्जे किसके हिस्से में और
कैसे आये ?
हाथी हो या शेर या
फिर हो कोई सूअर जंगल में रहने वाला
किसने , क्यों या फिर
कैसे खाए ।

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
साहिबाबाद ।

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इस होली मैं तो आपकी हो ली
मत कहना मुझे कि
कुछ कहना नहीं आता ।

जब भी बुलओगे
पकड़ लूंगीं डगर तुम्हारी
मत कहना मुझे कि
चलना नहीं आता ।

कर लिया है चेहरा लाल
तुम्हारे गुलाल से
मत कहना मुझे कि
संवरना नहीं आता ।

सजा लिया है खुद को
तुम्हारे प्यार से
मत कहना मुझे कि
सजना नहीं आता ।

छोड़ दिया है साथ सखी - सहिलियों का
मत कहना मुझे कि
कुछ खोना नहीं आता ।

दोगे साथ मेरा जिन्दगी के बाद भी
मत कहना मुझे कि
कुछ मांगना नहीं आता ।

ये तो क्या वार दूँ
हर होली तुम पर
मत कहना मुझे कि
कुछ करना नहीं आता ।


सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
D-184 , Shyam Park Ext.
साहिबाबाद - 201005( U.P )
#सही

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कविता

तुम पर कविता कैसे लिख दूँ
बन्द हैं राहें क्यूँ कर खोलूं ।

रात वीरानी की है तुमने
दिन की कहानी कैसे बोलूं ।

सावन आया बहार नहीं है
बरखा से क्या शिकवे कर लूँ ।

जीवन का ताना - बाना हैं उम्मीदें
टूटी उम्मीदों से आँचल भर लूँ।

कहा था तुमने आओगे इक दिन
उस दिन की तोहमत में जी लूँ ।

तुम पर कविता कैसे लिख दूँ
बन्द हैं राहें क्यूँ कर खोलूं ।


सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन ,
साहिबाबाद - 201005।( ऊ.प्र . )

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# Kavyotsv

कविता - 2

न होते तुम , तो क्या होता ....... !

न होता कहीं सावन , न होता कहीं उपवन
न होता कहीं समर्पण , न होता कहीं आलिंगन

न होती कहीं रुठन , न होती कहीं अड़चन
न होती कहीं अनबन , न होती कहीं मनावन

न खिलते कहीं फूल . न होते कहीं शूल
न होती कहीं अमराई , न मन लेता अंगड़ाई

न बदरा बनते बौझार , न झरना देता फुहार
न कोहरा बनता धुंध , न प्रेमी लिपटते निर्दवन्द

न सपर्श होता कोमल , न जलधार होती निर्मल
न नृत्य करता मयूर , न कोयल गाती भरपूर

न होती कोई आस्था , न मानता कोई प्रेम की व्यथा
न बजती कोई बाँसुरी , छा जाती शक्तियाँ आसुरी .

न प्रकृति करती श्रँगार , न फूट पड़ते उद्गार
न माझी सुनाता मल्हार , न बृह्म होता निराकार .

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी-184, श्याम आर्क एक्सटेंशन साहिबाबाद, उत्तरप्रदेश- 201005 Mo. 09911127277

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#काव्योत्सव

कविता - 1

तुम बिन जीवन कैसे बीते

तुम बिन जीवन कैसे बीते ,
न कोई खुशबू ,न कोई सावन

दिन का उजाला ह्रदय की चुभन
यादों के झरोखे पीड़ा का मंचन ,
तुम संग बीते छण हैं रीते ,
तुम बिन जीवन कैसे बीते .

बदरा आते बदरा जाते ,
बरस - बरस कर तुम्हें जताते .
हरियाली पत्तों पर छाती ,
अंतर्मन में मुझे रुलाती ,
कैसे कोई मन को जीते .
तुम बिन जीवन कैसे बीते

भोर की आरुणी संशय ले आती ,
कोयल की कू-कू भी न भाती ,
नदिया की कल-कल धारा न लूभाती,
भंवरों की गुंजन रूदन में जाती ,
यूँ ही प्रेमी विष को पीते ,
तुम बिन जीवन कैसे बीते .

कविता - 2

न होते तुम , तो क्या होता ....... !

न होता कहीं सावन , न होता कहीं उपवन
न होता कहीं समर्पण , न होता कहीं आलिंगन

न होती कहीं रुठन , न होती कहीं अड़चन
न होती कहीं अनबन , न होती कहीं म

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी-184, श्याम आर्क एक्सटेंशन साहिबाबाद, उत्तरप्रदेश- 201005 Mo. 09911127277

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