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आंखे बिछाए, मैं इंतज़ार करता हूं कोई करे ना करे, मैं ऐतबार करता हूं तुझे भले ही, फुरसत नहीं, मुझे याद करने की मगर मैं आज भी, तुझ पे, जां निसार करता हूं। -Satish Malviya
सहेजा है तुझको, बड़ी नज़ाकत से तुम डर ना जाओ, किसी आहट से अब परवाह नहीं, क्या कहेगा ज़माना मतलब है हमे बस, तेरी मुस्कुराहट से। -Satish Malviya
मेरी मुस्कान के पीछे मुहब्बत है तेरी तू है मेरा हमदम खुशकिस्मती है मेरी यूं तो बहुत हैं गमों के फरिश्ते तस्वीर खुशियों की बस तूने ही उंकेरी। -Satish Malviya
फ़ौरन दौड़ आते थे कभी जो हमें देखकर आज वही दूर से भी पूछा नहीं करते। -Satish Malviya
आज फाग का पर्व है आया अपने संग तरंगें लाया गांव गांव में, शहर नगर भी रंग बिरंगा मौसम छाया। आज फाग का पर्व है आया। कान्हा खेले राधा के संग राम लगाए सीता को रंग अवध भिगोए, भीगे ब्रज भी भिन्न भिन्न हैं खेलन के ढंग। आज फाग का पर्व है आया गलियां खेले चौबारे संग बूंदें खेले, बौछारें संग पीले, हरे, लाल और नीले भीगे चुनरी भीगे अंग अंग। आज फाग का पर्व है आया अपने संग तरंगें लाया। #HappyHoli
ममता का दर्पण, तुझ में ही है त्याग और समर्पण, तुझ में ही है तुझ में ही धारा है करुणा की वात्सल्य का कण कण, तुझ में ही। तेरे स्वरूपों के, गुणगान में हे नारी तेरे, सम्मान मैं रच के छोटी सी कविता ये लाया हूं मैं तेरे संज्ञान में। अंबर भी तू ही, तू ही धरा तेरा ह्रदय है दया से भरा गंगा के जैसी, निश्चल है तू तू ही है लक्ष्मी, तू ही स्वरा। तू ही प्रकृति, तू ही काली दृढ़ है तू, तू ही है शक्तिशाली अधूरा है जग ये, तेरे बिना तू ही इस जगत को, जनने वाली। -Satish Malviya
शमायें बुझा दी कुछ लोगों ने हमारी राहों में और हम अंधेरे में और चमक उठे। साजिशें थी उनकी नाकाफी हमे गिराने में हर बार गिरे हम मगर गिर कर फिर उठे। वो आरज़ू करते रहे की हम रुक जाएं थक कर हमने रुक कर छाले सहलाए और फिर चल पड़े। आख़िर रुकी उनकी साजिशें पर हम न रुके हौसलों की मशाल ले राहों में बड़ चले।
विचलित मन में फैला विवाद उद्घोष हुआ जब शंख नाद मचल पड़े सब वीर धीर निकले भाले और खड़ग तीर उठ तू भी धनु को थाम जरा अंदर के अहम को मार गिरा रावण तेरे भी भीतर है कब तूने उसे पहचाना है जब जो चाहा, है तूने किया अब सत्य तुझे अपनाना है मिथ्या वाणी, तू छोड़ तनिक आ गई दशमी विजया प्रतीक -Satish Malviya
कोई गर बात मैं कह दूं, तुझको बतंगड़ लगती है कोई जस्बात गर छेडूं, तुझको नौटंकी लगती है कोई वाक्या सुनाऊं तो, तुझे अफसाना लगता है तेरी तारीफ़ गर कर दूं, तुझे साज़िश सी लगती है। सलीके जीने के सारे, तुझी को तो हैं आते मेरी गिनती गवारों में, तेरे विद्वानों से नाते बोलने पे जो तू आती, कसम से कहर ढा जाती जुबां होते हुए भी हम, सहम के बोल ना पाते। मुझे तू आग लगती है, तुझे लगता हूं मैं पानी छुरी और खरबूजे जैसी ,है तेरी मेरी ये कहानी शिकायत करता हूं मै पर, पता है तुझको दीवानी धड़कनों मैं तू है बसती, तू मेरी है जिंदगानी। -Satish Malviya
लबों से पूछूं, या मुस्कुराहट से पूछूं। डर से पूछूं, या आहट से पूछूं। तू ही बता, ऐ रोज़ बदल जाने वाले वक़्त अल्फाजों से पूछूं या लिखावट से पूछूं। चमन से पूछूं, या गुलाब से पूछूं। जाम से पूछूं, या शराब से पूछूं। मुकर्रर रखना है अगर, चांदनी आसमां की तो चांद से पूछूं,या आफ़ताब से पूछूं। आंखो से पूछूं या इशारों से पूछूं। दामों से पूछूं, या बाजारों से पूछूं। जब हो जाएगा कभी बेमुरब्बत। तो गर्दिश से पूछूं या सितारों से पूछूं। -Satish Malviya
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