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Prafulla Kumar Tripathi

Prafulla Kumar Tripathi Matrubharti Verified

@prafullakumartripathi.283181
(64)

प्रियवर,
हैँ आप ऐसे तरुवर।
जो पुष्प से लदे हुए,
सुगंध से भरे हुए।।
प्रियवर,
हिमालय से खडे हुए।
स्वाद से भरे हुए,
फल फूल से लदे हुए।।
प्रियवर,
हैँ आप ऐसे गहवर।
धूप से नहाए हुए,
शीत में ठिठुरते हुए।।
प्रियवर,
मंद मंद गहते हुए।
चुनौतियों में तपते हुए,
मौन मौन सहते हुए।।
प्रियवर,
ऐसे आप गुरुवर।
कि छाँव सबको देते हुए,
कर्तव्य बोध करते हुए।।
प्रियवर,
अपना सभी लुटाते हुए।
गीत मधुर गाते हुए,
सुख दुःख में गुनगुनाते हुए।।

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तुम साथ थे तो सबकुछ संग साथ था,
जीवन का कुछ अलग अलग ही रंग था।
दुःख सुख का लगता मरहम,
सुख का लहरता था परचम।।

नैनो की पुतली चढ़ कर,
नज़रों में समा जाओ।
तुम हो छिपे जहां भी,
अब पास तो आ जाओ।।

अब फूल भी हैँ शूल मुझे,
सब कहते जाऊं भूल तुझे।
पीड़ा मन में ऐसी बारम्बार उठे,
ज्यों तेज़ हवा से कोई रौशनी बुझे।।

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स्वच्छता
तन मन को सुंदर करना है,
स्वछ गगन भी अब रखना है।
शुचिता को अब धर्म बना कर ,
भारत को स्वर्ग बनाना है।।
🌹
शुचिता,स्वच्छता का हर साधन,
अब हम सबको अपनाना है।
जन-जन ने अब यह ठाना है,
भारत को स्वर्ग बनाना है।।
🌹
हाथों में झाड़ू लेकर हम,
आओ मिल -जुल श्रमदान करें ।
घर-घर शौचालय बनवा कर,
मानवता का सम्मान करें।
🌹
शुचिता सम्बन्धी बापू की ,
सब बातों को अपनाना है ।
सुंदर तन मन सुंदर जीवन ,
भारत को स्वर्ग बनाना है ।।
🌹
इतराएंगी अब सड़कें भी ,
इठलाएगा घर का कोना ।
कम्पोस्ट बनेगा अब कूड़ा ,
फसलें भी उपजेंगी दूना ।
🌹
अपने ख़ातिर तो जिये बहुत ,
अब देश की ख़ातिर जीना है ।
जन-जन ने अब यह ठाना है,
भारत को स्वर्ग बनाना है ।।
🌹
तन मन को सुंदर करना है,
स्वछ गगन भी अब रखना है।
शुचिता को धर्म बना कर अब,
भारत को स्वर्ग बनाना है।।

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समरसता
मेरे पिताजी का आदर्श सूत्र था हर परिस्थितियों में पारिवारिक और सामाजिक समरसता बनी रहनी चाहिए....!
मेरे पिताजी श्री आचार्य प्रतापादित्य एक गृहस्थ सन्यासी थे।वे धर्म के वैज्ञानिक स्वरूप में आस्था रखते थे।उनका कहना था कि यह मानव शरीर चाहे किसी भी जाति,धर्म का हो , आठ चक्र और नौ द्वारों वाली देवताओं की पुरी है।जब संपूर्ण द्वन्द्वों से व्यक्ति ऊपर उठ जाता है तो वह शांति की स्वर्ग भूमि में अपनी चेतना को स्थापित कर लेता है।ऐसा प्रत्येक साधक कबीर का प्रतिनिधि हो जाता है।लड़ाई झगड़ा देखकर वह रो पड़ता है और कह उठता है," सन्तों , जग बौराना।"
धर्म के नाम पर राजनीति परोक्ष रुप से शोषण और मूलतः आर्थिक शोषण का घिनौना स्वरूप है। वे यह भी मानते थे कि धर्म की सही समझ पैदा करके सभी प्रकार के शोषणों से मुक्त समाज की सुंदर संरचना करनी पड़ेगी।
यह बताना चाहूंगा कि हम सभी परिजन उनके बताए रास्ते पर चलने की कोशिश कर रहे हैं।उनकी इस वैचारिक सोच को समाज में भी फैला रहे हैं जिससे सामाजिक और पारिवारिक समरसता प्रगाढ़ हो।
🙏🏻

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अस्त होते जीवन सूर्य की वेदना !
अजन्मा गर्भस्थ शिशु था , किलकारियां मारते आया | बचपन खेलते - कूदते बीता और जवानी मस्ती में | जवानी जिम्मेदारियां भी लेकर आईं और जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ी | ........ लेकिन इन्हीं जवानी की मस्ती और वैवाहिक जीवन की अनिवार्यता के बीच जाने कब संतानें भी घर में आ
गईं |
..लो, अब तो उसका भरा पूरा परिवार कहलाने लगा | लेकिन उन दोनों के दायित्व बढ़ते चले गए ...पहले बच्चों का पालन पोषण और फिर उनकी पढ़ाई और नौकरी |
अरे ? देखते देखते घर में ऊधम मचाते रहने वाला मेरा अंश तो बड़ा हो गया ..और , और उसका तो सेलेक्शन भी हो गया एक अच्छी सेवा के लिए ! शादी की तलाश हुई और बहुत छोटे शहर से जिसमें सांस्कृतिक प्रदूषण की सम्भावना कम हो, संस्कारी हो, शील मर्यादा जानती हो ऎसी बहू घर ले आया ।
लेकिन यह क्या ? उसने उस खुशहाल परिवार में एक एक करके शील ,मर्यादा, मान सम्मान की मर्यादा रेखाओं को तोड़ा ही नहीँ मसला डाला है | एक बेटा उसके घर में कदम रखते ही भगवान को प्यारा हो गया। अनहोनी! अब दूसरा बेटा.. उस बेटे पर तो कुण्डली मारकर ऐसा बैठ गई कि उसने अपना प्रमोशन, अपना विवेक, अपनी निर्णय लेने की क्षमता को भी "गुड बाय" कर दिया है |
इतने तक भी बात होती तो चलो अच्छा है. .अब तो अपनी संतानों को भी गालियाँ, अशिष्टता ,उद्दंडता का हार पहना दिया है |
हे प्रभु ! हे जीवन नैय्या के खेवन हार, कहां जाएगा मेरा असमय अस्त होता जीवन सूर्य ? 😘

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चुनौतियों के बीच मुस्कुरा रही थी ज़िन्दगी!
उनका नाम है मीना ........, उम्र 62 वर्ष, केन्द्रीय विद्यालय, कैंट, लखनऊ से सेवानिवृत्त शिक्षिका।स्वयं बी.पी., थायराइड और डिप्रेशन की मरीज़ ।16 वर्षों पूर्व वर्ष 2007 में अपने युवा सैनिक पुत्र लेफ्टिनेंट यश आदित्य (7मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री) की असमय शहादत की घटना से अब तक आहत हैँ । उनकी बात चले तो बस!आँखों से बरसात उतरने लगती है, चेहरे से क्रन्दन, होठों पर नि :शब्दता।लेकिन वाह रे हौसला, वाह रे जज़्बा! वह दृश्य अभी भी जीवंत हो उठता है| कोरोना की दूसरी लहर में उनकी कालोनी विज्ञानपुरी, महानगर, लखनऊ का लगभग हर घर प्रभावित था |उनके अपने बहनोई डिप्टी एस. पी. ओ. पी. मणि सहित उस समय तक कालोनी में तीन लोगों की मृत्यु भी हो चुकी थी जब का यह वाकया बयान कर रहा हूं ।
उस मरघट से सन्नाटे को चीरती हुई वे सुबह शाम अपनी पड़ोसियों की मदद करने में संलग्न थीं ।कहीं रात का खाना पहुंचवाना होता तो कहीं दुकान से दवाइयां या सब्जी मंगवाकर देनी होती थीं ।कालोनी के लावारिस देसी कुत्तों को भी तो उन्हें सुबह शाम रोटियां डालते देखा था इन आंखों ने! सिर्फ़ वे ही नहीं उस कालोनी के तमाम लोग राहत और बचाव कार्य में लगकर अपनी सहृदयता और सदाशयता का परिचय दे रहे थे.... कन्हैया लाल वर्मा, ममता त्रिपाठी , सुधा मिश्रा.....
हां उन सभी के पास एक युवा सहायक बांके बिहारी इस काम में मदद कर रहे थे , उनका नाम क्यों न लिया जाय! विनाशकारी आपदा कभी भी बता कर नहीँ आया करती और यह अन्धेरा कभीभी छा सकता है। इसलिए उन जैसे समाज सेवा के उत्साहियों की कीर्तिगाथा तो सामने आनी ही चाहिए। आइये सलाम कीजिये इन जैसे शूरवीरों को ! इनके अदम्य हौसलों को 🙏🏻.

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सेक्स - यंत्र, मंत्र और तंत्र
पति पत्नी और उनके बीच के यौन संबंधों को लेकर कम लोग बोलना और लिखना चाहते हैँ। साहित्य में तो काफ़ी कुछ लिखा पढ़ा गया लेकिन आम जीवन में इसे एक तरह से वर्जना योग्य ही माना गया है।
मैं एक शादी शुदा वरिष्ठ नागरिक हूं। मैंने भी इस पर बहुत चिंतन - मनन किया है और पाया है कि ऐसे संबंध जबतक पति पत्नी का शरीर इसे बनाये रखने की अनुमति और क्षमता दे उसे अवश्य जारी रखना चाहिए।सेक्स सिर्फ़ तन और इन्द्रिय सुख का माध्यम नहीँ है।यह मन को एकाकर करने का यंत्र भी है। आपसी झगड़े समाप्त करने का तंत्र भी है। मैंने तो यह भी पढ़ा है कि यह पति पत्नी को दीर्घायु करने का मंत्र भी है।

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चाय हो या इश्क़
दोनों ज़रूरी हैँ जिंदगी के लिए..
ये दोनों आक्सीजन हैँ ज़िन्दगी के लिए.
आपने महसूस किया है?
मैंने तो यही महसूस किया हैँ।


और, एक राज़ की बात बताऊँ.?


चाय ने तो मेरी किस्मत ही बदल डाली थी
जब TATA TEA ने
अपने स्लोगन प्रतियोगिता मे मेरे लिखे
स्लोगन को पसंद करके
मुझे एक TATA INDICA गाड़ी
इनाम में दे दिया था!

So,
Anything can be happen in your life if you have a cup of tea.🌹

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वे सज्जन उनके जीवन रूपी फ़िल्म में अतिथि भूमिका निभाने लगे थे।
अच्छा लगा था उनका सानिध्य। उनके विचार बहुत सात्विक हुआ करते थे।
काम, क्रोध, मद, लोभ -कुछ भी तो नहीं झलकने पाता था उनके आचरण में!
लेकिन धीरे धीरे वे और भी अंतरंग बनने के क्रम में जाने कब उन दोनों के बीच या यूँ कहिए उनकी फ़िल्म में विलेन बन कर उपस्थित हो उठे।
व्हाइट कालर विलेन।
सचमुच उनको यह नहीँ पता था कि आपसी संबंधों में भी पहरेदारी आवश्यक हुआ करती है!ठीक उसी तरह जैसे अभिभावक अपने बच्चों के लिए करते हैँ या अभिभावकों को करना चाहिए।
एक समय आया कि तुलना होने लगी कि फ़िल्म में घुसपैठ बना रहा व्हाइट कालर विलेन अच्छा है या वे जीवन साथी?
बस, संदेह, अविश्वास की श्रृंखला चलने लगी और उस फ़िल्म में घर उजड़ने की पटकथा तैयार हो गई।फ़िल्म बनने के पहले ही फ्लॉप हो गई।
ज़िन्दगी कब, कैसे, किस रूप में करवटें ले लेती हैँ विश्वास नहीं हो पाता है।

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जब पति पत्नी के आपसी संबंधों में दीमक लगने लगता है तो?
तो उसे समाप्त करने के लिए
किसी प्रकार के कीट नाशक की आवश्यकता नहीँ हुआ करती है.
बस,
संबंधों के खोखला होने से पहले एकदम कूल होकर दोनों उसके कारणों पर मंथन करें.
अपनी - अपनी हठवादिता छोड़कर सकारात्मकता का दामन थामें...
उम्र कोई हो, दौर कोई हो,
मसला कोई हो, ठौर कोई हो...
औरत और मर्द एक दूसरे को बहुत कुछ दे -ले सकते हैँ..
बस चाहना होनी चाहिए,
उलाहना छोड़ते हुए..
जवानी का प्यार होना चाहिए,
तकरार छोड़कर...
इश्क़ होना चाहिए,
जिंदगी के
आखिरी लम्हों तक!

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