प्रियवर,
हैँ आप ऐसे तरुवर।
जो पुष्प से लदे हुए,
सुगंध से भरे हुए।।
प्रियवर,
हिमालय से खडे हुए।
स्वाद से भरे हुए,
फल फूल से लदे हुए।।
प्रियवर,
हैँ आप ऐसे गहवर।
धूप से नहाए हुए,
शीत में ठिठुरते हुए।।
प्रियवर,
मंद मंद गहते हुए।
चुनौतियों में तपते हुए,
मौन मौन सहते हुए।।
प्रियवर,
ऐसे आप गुरुवर।
कि छाँव सबको देते हुए,
कर्तव्य बोध करते हुए।।
प्रियवर,
अपना सभी लुटाते हुए।
गीत मधुर गाते हुए,
सुख दुःख में गुनगुनाते हुए।।