चुनौतियों के बीच मुस्कुरा रही थी ज़िन्दगी!
उनका नाम है मीना ........, उम्र 62 वर्ष, केन्द्रीय विद्यालय, कैंट, लखनऊ से सेवानिवृत्त शिक्षिका।स्वयं बी.पी., थायराइड और डिप्रेशन की मरीज़ ।16 वर्षों पूर्व वर्ष 2007 में अपने युवा सैनिक पुत्र लेफ्टिनेंट यश आदित्य (7मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री) की असमय शहादत की घटना से अब तक आहत हैँ । उनकी बात चले तो बस!आँखों से बरसात उतरने लगती है, चेहरे से क्रन्दन, होठों पर नि :शब्दता।लेकिन वाह रे हौसला, वाह रे जज़्बा! वह दृश्य अभी भी जीवंत हो उठता है| कोरोना की दूसरी लहर में उनकी कालोनी विज्ञानपुरी, महानगर, लखनऊ का लगभग हर घर प्रभावित था |उनके अपने बहनोई डिप्टी एस. पी. ओ. पी. मणि सहित उस समय तक कालोनी में तीन लोगों की मृत्यु भी हो चुकी थी जब का यह वाकया बयान कर रहा हूं ।
उस मरघट से सन्नाटे को चीरती हुई वे सुबह शाम अपनी पड़ोसियों की मदद करने में संलग्न थीं ।कहीं रात का खाना पहुंचवाना होता तो कहीं दुकान से दवाइयां या सब्जी मंगवाकर देनी होती थीं ।कालोनी के लावारिस देसी कुत्तों को भी तो उन्हें सुबह शाम रोटियां डालते देखा था इन आंखों ने! सिर्फ़ वे ही नहीं उस कालोनी के तमाम लोग राहत और बचाव कार्य में लगकर अपनी सहृदयता और सदाशयता का परिचय दे रहे थे.... कन्हैया लाल वर्मा, ममता त्रिपाठी , सुधा मिश्रा.....
हां उन सभी के पास एक युवा सहायक बांके बिहारी इस काम में मदद कर रहे थे , उनका नाम क्यों न लिया जाय! विनाशकारी आपदा कभी भी बता कर नहीँ आया करती और यह अन्धेरा कभीभी छा सकता है। इसलिए उन जैसे समाज सेवा के उत्साहियों की कीर्तिगाथा तो सामने आनी ही चाहिए। आइये सलाम कीजिये इन जैसे शूरवीरों को ! इनके अदम्य हौसलों को 🙏🏻.