Quotes by Minni Mishra in Bitesapp read free

Minni Mishra

Minni Mishra

@minnimishra.312185
(1)

गंगाम्भ

“निस्तेज सा चेहरा, मुट्ठी भर कमर , पेट में दरारें ! उफफफ ! बेटी, तुम्हारा ये हाल ? तुम कैसे प्राणहीन हो गयी ?" गंगा की यह दुर्दशा देख, बाबा मर्माहत हो बोल पड़े।"

आप तो सब जानते हैं बाबा - कभी, मैं स्वर्ग से यहाँ, धरती पर लोकहित के लिए ही लायी गयी थी। देवाधिदेव महादेव ने मुझे अपने मस्तक पर सुशोभित कर मेरा मान बढ़ाया था। इतना ही नहीं , मेरी शुद्धता और पवित्रता के लिए कभी "अम्भ " शब्द का प्रयोग हुआ करता था। आज मैं "अप" बन के रह गयी हूँ। ओह ! अम्भ से अप तक का मेरा दुखद सफर ...! अब, मैं आचमन के लायक भी नहीं रह गयी। जिस भारत के आधे क्षेत्र को मैंने संचित और पोषित किया, उन सभी जगहों से मैं प्रताड़ित हूँ। मेरे जिस्म से खून रिस रहे है, मैं मृतप्राय जीवन व्यतीत ... हूं हूं हूं।"

"अरे, तुम रोती क्यों हो ? तुम पापहारिणी गंगा हो। आज भी लोग पहले की तरह तुमसे प्यार और श्रद्धा करते हैं। तुम ही सभी मानव को स्वर्ग की ओर ले जाने में सहायक हो। पर, तुम्हारी इस दुर्दशा का अपराधी भी वही मानव है। उसीके लापरवाही और अंधाधुंध व्यवसायीकरण के चलते तुम्हारी ये दुर्दशा हुई है। तुम घबराओ नहीं, तुम्हारे ऊपर पिता का साया है।

तुम्हारा, यह पिता.... हिमालय की तरह अडिग, तुम्हारे प्रवाह को लौटाने के लिए कृतसंकल्प है। देखो, मेरी भुजाओं को , जिसमें अभी भी अर्जुन के गांडीव और भीम के गदा की तरह कौरवों को परास्त करने की क्षमता है। ” इतना कहते हुए बाबा ...गंगा के कायाकल्प में जी-जान से जुट गये।

निस्तेज पड़ी गंगा, पिता का स्पर्श पाकर जीवंत... हो, पुनः कल- कल करने लगी।

मिन्नी मिश्रा/ पटना
©

Read More

तुम्हारी माँ
*********
बचपन से बापू को देखा था, हमेशा शराबी ही दिखे , कभी उनमें पिता की झलक दिखी ही नहीं ।
लंबा कद, मजबूत हाथ, झुके हुए कंधे, चाल लड़खड़ाती , हाथ में दारू का बोतल। यही थी मेरे बापू की पहचान !

जब भी उन्हें घर में प्रवेश करते देखता , मैं कांप उठता, आते ही वो माँ पर बरसते, गाली के साथ बातें करते । माँ सहमी-सहमी सी रहती, कभी बापू से उसे थप्पड़ भी खानी पड़ती ! बस, विलखते हुए वो एक ही बात कहती, " छोड़ दो , मत मारो !"

उस समय मेरा मन करता बापू को धक्के मारकर बाहर कर दूँ, पर ऐसा कर नहीं पाता ! वो पिता थे ... !

माँ के ऊपर जब नजर ठहरती, जैसे कोई साक्षात देवी हो । दिनभर पूजा करती, जो खाना बनाती पहले मुझे खिलाती, फिर बापू को देती, अपने लिये क्या रखती... मैंने नहीं जाना!

छोटी उम्र से यही सब देखा ...पिता की दहशत और माँ का समर्पण ।

बापू के बारे में जब भी माँ से कुछ पूछता, वो कहती," तू अभी बच्चा है, जा बाहर खेल।" मेरा प्रश्न हरबार अनुत्तरित रह जाता !

एक दिन बापू पीकर आये और मुझसे बकझक करने लगे, दो थप्पड़ कस के जड़ दिए !

देखते ही माँ रोटी बनाना छोड़ , बेलन लेकर दौड़ पड़ी , बेलन से बापू के सिर पर प्रहार किया । जैसे उस दिन माँ के देह पर देवी सवार हो गई हो ।
कटे वृक्ष की तरह बापू गिर गए । सिर से लहू बह रहा था, शुन्य नजरों से वो मेरी ओर ताकने लगे । लेकिन, माँ की आँखों में अभी भी नफ़रत भरा था । फिर भी वो बापू के सिर से बहते लहू को साफ करने लगी।

बापू के करीब मैं आना चाहा । लेकिन , माँ ने रोक दिया । मेरी तरफ देख कर बोली , "इन्हें मैं अकेले संभाल लूंगी , जा पढ, जिंदगी संभाल । तेरे बापू का साया, मैं कभी तुझपर नहीं पड़ने दूंगी । हाँ, ध्यान से सुन ले... तुम्हारे बाप की पत्नी नहीं , मैं तुम्हारी माँ कहलाना चाहती हूँ ।"

मैं विचारशून्य खड़ा.... माँ को देखता रहा। मुझे लगा, माँ बोलेगी, " अभी तू बच्चा है, जा खेल बाहर ।"

मिन्नी मिश्रा/ पटना
मौलिक©®

Read More

कोरोना से डटकर मुकाबला करें, डरे नहीं।💐💐💐💐

कोरोना का रोना हर जगह व्याप्त है। सभी डरे हुए , सशंकित हैं। सावधानियां बरतने का सख्त निर्देश मिडिया द्वारा दिया जा रहा है। बाहर का सभी काम काज ठप्प पड़ चुका है। आफिस घर से ही चल रहा है। होटल, यातायात, समारोह , व्यापार सभी लगभग बंद हो गए हैं।एक भयावह स्थिति हमारे सामने आ गया है। लेकिन डरने की जरूरत नहीं है।

कुछ सावधानियां, जो हर जगह पढने को मिल रहा है, जिन्हें बरतने की सख्त जरूरत है। जैसे--

1- बार-बार साबुन से हाथ धोने हैं।
2- लोगों से एक मीटर की दूरी बनाए रखनी है।
3- खाँसते या छींकते समय अपनी कोहनी से मुंह ढकना है (हाथ से नही)
4- अपने हाथों से मुंह, नाक और आंखों को छूने से बचें ।
5- भीड़भाड़ या कतार वाली जगहों पर जाने से बचें ।
6- सफर करने से बचें ।
7- अलगाव ही बचाव है ।

इसके अतिरिक्त , मेरा एसा मानना है, यदि हम नियमित रूप से आधे घंटे के लिए पाठ या जप करते हैं अथवा योग करते हैं , घंटी और शंख को पूजा के समय बजाते हैं, धूप,दीप,धूमन का प्रयोग करते हैं। तथा....

खाने में अदरक, काली मिर्च, हल्दी मिलाकर गर्म पानी दिन में दो तीन बार पीते हैं, तो कोरोना वाइरस हमारे निकट फटकने का हिम्मत कभी नहीं करेगा।

मिन्नी मिश्रा /पटना

Read More

#आदर *
शसि तू किधर चली *
"मीरा, तुम मुझे प्यार नहीं करती हो ! इधर कई महिनों से देख रहा हूँ, आफिस से आने के बाद तुम चाय - नाश्ते के लिए भी नहीं पूछती ! अपने में व्यस्त रहती हो!

पहले, जब मैं बाहर से आता था तो शरबत- चाय लेकर तुम हाजिर रहती थी। देखो, घर में सुख -सुविधा का सामान भरा पड़ा है। दिनोंदिन हमारी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।फिर तुम्हारा मूड क्यों उखड़ा रहता है ? सच सच बताओ, बात क्या है? " पति महोदय आज अधिक मूड में थे। पत्नी का हाथ पकड़ते हुए उबल पड़े।

"अरे... छोड़िए मेरा हाथ। " पत्नी झल्लाकर बोली।

" क्या किया मैंने? ऐसे हाथ क्यों छुड़ाया ? जैसे लगता है मैंने गंदे हाथों से तुम्हें छू लिया हो!? " पति ने तमतमाते हुए पलटवार किया।

" हाँ, बहुत गंदा हाथ रहता है आपका। जब से आफिस में आपको डबल प्रमोशन मिला है, तब से आप शसि से बेहद प्यार करने लगे हैं। उसकी गंध आपके होठों से आते रहती है। ये सब मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है।

कान खोलकर सुन लीजिए, जब तक आप मेरी सौतन ' शसि' का परित्याग नहीं करेंगे , मैं आपके निकट नहीं आऊँगी।"

सुनते ही पति का पारा सातवें आसमान चढ गया। "अरे , हद हो गई! तुम्हें अपने पति पर इलजाम लगाते हुए शर्म नहीं आती ?!" इतना कहते हुए पति लाइटर से सिगरेट सुलगाने लगा।

" फिर लगाया ना सौतन को होठों से ?!" पत्नी रौद्ररूप धारण कर बरस पड़ी ।

इस कोलाहल के कारण पति के मुँह से सिगरेटऔर दूसरे हाथ में जकड़ा शराब का बोतल अचानक छूट गया।

फर्श पर गिरने के साथ एक आवाज गूंज उठी, " अरे...शसि तू किधर चली ?" (श...शराब सि...सिगरेट)

मिन्नी मिश्रा/ पटना
मौलिक ©

Read More

#आनंद



#रास्ता # (लघुकथा)

घनानन्द के हाते में कुत्ते-बिल्ली का हमेशा आना-जाना लगा रहता था | उनका बड़ा सा परिवार था, सो चापानल के पास पड़े जूठन में से कुछ न कुछ खाने के लिए उन दिनों को हमेशा मिल ही जाया करता | पर, कुत्ते-बिल्ली की आपस में कभी बनती नहीं थी ! मौक़ा पाते ही.. वो एक-दुसरे के ऊपर छींटाकशी करना शुरू कर देते |

एक बार बिल्ली, हाते में रखे बालू के टीले पर उछल कर बैठ गई और कुत्ते को चिढ़ाने लगी, ”देख , मैं तुमसे बड़ी हो गई, हा..हा..हा....|”

“मौसी, जान ले, कद से कोई बड़ा नहीं होता ..अक्ल से बड़ा होता है।”

“अच्छा...! अपने को बड़ा अक्लमंद समझता है‌।तो फिर गली, चौक-चौराहे पर हर समय भौंकते क्यूँ रहता है ?” बिल्ली ने पलटवार किया ।

“ अरी... ओ, भोली मौसी ! क्या करुँ? बिना भौंके, आजकल रास्ता छोड़ने को कोई तैयार ही नहीं होता !”

---मिन्नी मिश्रा
स्वरचित/ पटना

Read More

#सजाना

* लक्ष्मी- नारायण * (लघुकथा)

‘क्या हुआ ? तबियत तो ठीक है न ? सबेरे से तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ लग रहा है ?”

“ हाँ..हाँ...सब ठीक है |” मैं चेहरे पर फीकी हँसी लाते हुए पति से बोली |

किसे बताऊँ, मन की बात ! आज मेरी पहली वटसावित्री है...मायके से एक कौआ भी नहीं पूछने आया !

मैं, बार-बार बाथरूम जाकर अपने आँसुओं से भींगी आँखों पर छींटा देती , और सामने लगे शीशे को मन की बात बताती , “ बचपन सौतेली माँ के साये में बीता...असली माँ का स्वाद नहीं जाना | नई माँ के मोहपाश में पिता का पलड़ा हमेशा उधर ही भारी दिखा | ”

खैर! आनन-फानन में मेरी शादी करके पिता का बोझ तो हल्का हुआ ! भगवान का लाख-लाख शुक्र , मेरे पति भले पोलियो से ग्रसित हैं...पर, मन से अपाहिज नहीं !

“ लक्ष्मी....|”

“ अपना नाम सुनते ही मेरी तन्द्रा टूट गई... मैं घबराकर चिल्लाई, “जी.....अभी आई |”

“ ये पहन लो.... तुम्हारा पहला वटसावित्री है |” व्हील चेयर पर बैठे पति, चुनरी की साड़ी के साथ सिंदूरी लाल लाख की चूड़ी मेरे हाथ में पकड़ाते हुए आगे बढ़ गये |

झट से तैयार होकर, मैंने फूल की साजी (डलिया) लेते हुए पूजा करने के लिए जैसे ही आगे बढ़ी, पति व्हील चेयर के सहारे मेरे करीब आ पहुँचे | उठकर मेरे माथे को चूमते हुए बोले, “ सच, तू लक्ष्मी-सी लगती है |”

आज, उनको पहली बार बिना सहारे के खड़ा होते देख, मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था | हड़बड़ाहट में मेरे साजी के सारे फूल उनके चरणों पर सज गये |

मैं झुकते हुए आहिस्ता से बोली, “आप, नारायण हो गये |”

----- मिन्नी मिश्रा /पटना
स्वरचित

Read More

#जिंदगी


* सुपरस्टार*
“सीमा, लगता है हारमोनियम पर तुम ठीक से रियाज़ नहीं कर रही हो। देखो, तबले के साथ तुम्हारा सही ताल नहीं मिल रहा है... तार की जगह तुम मध्य सप्तक लगा रही हो ! कहा था ना...सबेरे चार बजे उठकर सुर साधा करो ।


“गुरु जी ...वो... रियाज...। ऐसा है, मैं एक साल से रियाज़ करते-करते अब थक गई हूँ । “ सीमा साहस बटोरते हुए बोली ।


“ बस, एक ही साल में थक गई ?” पांच सालों तक लगातार , अहले सुबह उठकर कई घंटों तक रियाज करोगी, तब जाकर तुम्हें सुर-ताल पर पकड़ बनेगी, समझी। “ गुरु जी झल्ला कर बोले।


“गुरु जी , मेरी एक बचपन की सहेली है। उसके पास अधिक पैसे नहीं थे।सिर्फ छः महीने संगीत सीखा । उतना ही रियाज़ में आज वो स्टेज शो करने लगी है।
हमेशा प्रोग्राम देने इस शहर से उस शहर जाती है।रीमिक्स गाने में वो आजकल खूब धूम मचा रही है । शहर में उसका अच्छा नाम भी है..और उसके पास पैसे भी ढेर हो गए हैं । और उसे सुर साधने के लिए मेरी तरह समय भी बर्बाद नहीं करना पड़ता है ! उसकी लड़खड़ाती जिंदगी बदल चुकी है अब वह हवा से बात करने लगी है।

आजकल श्रोता भी बहुत समझदार हो गये हैं।जैसे ही कोई गायक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शुद्ध क्लासिकल संगीत—भैरवी, भूपाली, मल्हार.. आदि शुरू करता है ...अधिकांश श्रोता इंटरवल कहकर बीच से ही उठ जाता है।

मैं भी सोचती हूँ, अब क्लासिकल छोड़कर, रीमिक्स ही सीख लूँ । फिर उसकी तरह मैं भी रातों-रात स्टार बन जाऊँगी । गुरु जी मेरे साथ तबले पर संगत आप ही कीजियेगा । “ इतना कहकर सीमा गुरू जी के चेहरे के चढ़ते-उतरते भावों को पढ़ने लगी।

“ गुरु-शिष्य के संवाद को सुनकर, हारमोनियम से निकला स्वर— ‘साऽऽऽ....बहुत जोर से कराह उठा...!

मिन्नी मिश्रा/ पटना

Read More

सभी बहनों को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
*यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः*

भारतीय परंपरा में नारी का स्थान बहुत ही उच्च है| चाहे अर्धनारीश्वर की अवधारणा हो या काली-दुर्गा आदि का देव स्वरुप, सर्वत्र नारी सम्माननीय और माननीया है| इसलिए भारत की सामाजिक परम्परा में नारी का जो स्थान है, वह विश्व में अनुकरणीय और आदर्श है|

हालाँकि मध्यकाल में भारत में जो राजनीतिक झंझावात हुआ, उसके कारण यहाँ नारी की स्थिति में काफी पतन और गिरावट हुआ, जिसका दंश आज तक मौजूद है| लेकिन आधुनिक काल में भारतीय संविधान यहाँ नारी को पूर्ण सम्मान और श्रद्धा के साथ पुनर्स्थापित करने में दत्तचित्त है|
जिस मताधिकार और राजनितिक अधिकार हेतु यूरोप में भी नारी को भेदभाव सहना पड़ा, वैसा भेदभाव भारतीय संविधान ने भारत में नहीं होने दिया है| मगर अभी भी यहाँ दहेज़,स्त्री-लिंग की भ्रूण-हत्या, नारी के विरुद्ध शोषण,पुरुष वर्ग का अहं आदि कुरीतियाँ हैं|

इन्हें ख़त्म करने हेतु हम सभी को संकल्पित और प्रयासरत रहने के जरुरत है| केवल दिवस मनाने से कुछ नहीं होता।

------मिन्नी मिश्रा /पटना

Read More

* हम साथ चलें*

ना कभी जीतने की प्रबल चाहत रही ,
और ना कभी हारने की रंजिश,
हाँ, सभी के साथ,
कदम से कदम मिलाकर,
चलने की एक ख्वाहिश है हरवक्त मेरी ।

जो जीतते हैं वो भी अपने हैं,
जो हारते हैं वो भी अपने ,
पर, बहुत फर्क देखा है दोनों में,
जीतने वाले अधिक खुश होते,
और हारने वाले, ओह! बेहद मायूस!

मायूस का चेहरा ....
मुझे पहले दिखता,
क्योंकि, जीतने वालों से वह
हमेशा ओझल रहता !

क्यों ना, हारने वालों के साथ हम चलें ?
क्यों ना, उनका हौसले बढायें?
क्यों ना, हम एक दिये से अनेक दिये जलायें?
ताकि खुद को वह कभी अकेला, पिछड़ा
और मनहूस न समझे !

कोई बेकार नहीं होता,
हर आदमी अपने में मशहूर होता है,
हाँ, जरूरत है...
अपने निहित गुण को पहचानने की,
उस गुण को उसे संवारने की,
फिर उसकी भी जीत तय है,
एकबार नहीं, सौ बार उसकी फतह है।

मिन्नी मिश्रा / स्वरचित
©

Read More

* मैं ...बेचारी *
अब छोड़ चलूँ ...
ये प्यार, ये मोहब्बत ,
रंगीन ख्वाबों की ये हसरत ...!
कुछ नहीं , सब बकवास है !
ना हँसाती है और ना रूलाती है,
पेंडुलम की तरह , केवल झूलाती है ।

बहुत खेल लिया यह नाटक,
हाँ, मैं भी अब समझने लगी हूँ ,
इस मतलबी दुनिया में...
सबको अपनी पड़ी है,
दूसरे को जानने - समझने की ,
फुर्सत, कहाँ ? किसको पड़ी है !?

पर, ये नादान दिल !
उफफफ ! मानता कहाँ !
फिसलता है ,गिरता है,
फिर भी उधर ही दौड़ पड़ता है ।
सुनता है... जब , वही ....
पुरानी, मीठी सी लुभाने वाली आवाज़ ...
...... "सुनो...मैं तुमको बहुत प्यार करता हूँ... । "

ओह! फिर वही आवाज.! ऐसा कहकर
मैं , झट, वहाँ से बैरंग लौट आती हूँ ।
लेकिन , मेरा मासूम दिल, वहीं अटक जाता है !
फिर ,वापस लौटकर , ठसक से पूछता है ,
अरे...तुम क्यों लौट आयी ? वही था ना तेरा पहले वाला ......?
मैं , हतप्रभ ... उसे एकटक देखती रह जाती हूँ ।

हठात् , उसका यह सवाल, मुझे कटघरे में लाकर खड़ा कर देता है , 'बताओ ... तुम,
क्यों खुद को बंधी हुई अब भी पाती हो ?'

सवाल के इस कटघरे में .. अकेले खड़ी ...
... अनुत्तरित, मैं उलझी हुई ...
एक बेचारी बन , ठगी सी रह जाती हूँ !

मिन्नी मिश्रा/ पटना
©

Read More