वर्शाली धीरे से कहती है---
वर्शाली :- मैं यहाँ बस आपके लिए आई हूं।
वर्षाली की बात सुनकर एकांश हड़बड़ा कर कहता है।
एकांश :- क क्या .... क्या ..? क्या कहा वर्शाली तुमने..?
वर्शाली एकांश के कान में कहती है---
वर्शाली :- हां एकांश जी मैं यहां सिर्फ आपके लिए
आयी हूं।
वर्शाली की आवाज इतनी धीरे थी के आलोक को
सुनाई नहीं देता है।
एकांश वर्षाली से पुछता है---
एकांश :- पर वर्शाली वो अमृत सिर्फ यही आती है या इस धरति पर कहीं और भी आती है जिसका पता और किसीको नही है ।
वर्शाली :- ये अमृत की किरने सिर्फ इसी जगह पर
आती है एकांश जी। और इसका ज्ञान सिर्फ हम
परियाों और देवतों को है। पर यहाँ देवता नहीं
आते हैं। क्योंकि उनके पास पहले से ही अमृत है। यह
एक दिव्य जगह है यहाँ पर ना ही आपको भूख लगेगीं
ना ही प्यास लगेगी और ना ही थकान का अनुभव
होगा। एकांश जी इस जगह पर सिर्फ हमारा राज
चलता है यहां हम जो चाहे वो कर सकते हैं और
किसी से कूछ भी करवा सकते हैं।
वर्शाली की बात सुनकर आलोक हंसने लगता हैं और कहता है----
आलोक :- हा हा हा हा....! क्या..! वर्शाली क्या कहा तुमने तुम किसी से भी कुछ भी करवा सकती हो वो
भी उसके मरजी के बगेर। क्या वर्शाली कुछ भी फेंको मत ।
इतना बोलकर आलोक हंसने लगता है। आलोक की हसी देख कर वर्शली हल्की मुस्कान देती है और आलोक की आंखों में देखती रहती है -----
वर्शाली :- आलोक आपको तो बहुत निंद्रा आ रही है ना।
तभी आलोक एक उबासी लेकर कहता है---
आलोत :- आह्ह्ह....हां वर्शाली मुझे बहुत जौर की निंद आ रही है मेरी पलक अपने आप बंद हो रही है। तुम दोनो बात करो तब तक मुझे सोना है।
वर्शाली आलोक को इशारा करती हुई कहती है---
वर्शाली :- उस दिशा में जाओ। उस कक्ष मैं।
आलोक वर्षाली के कहने पर कमरे में जाने लगता है तो एकांश आलोक को रोक कर कहता है----
एकांश :- अरे कहां जा रहा है ये तुझे अचानक निंद कहा से आने लगी।
आलोक :- मुझे बहोत निंद आ रही है यार में सोने जा रहा हूं जब तू घर जाएगा तो मुझे उठा देना।
इतना बोलकर आलोक कमरे के अंदर चला जाता है। एकांश भी आलोक के पिछे पिछे चला जाता है तो देखता है के आलोक सो चूका था जो गेहरी निंद में था। एकांश ये सब देख कर चौंक जाता है और कमरे को देखने लगता है। तो एकांश की आंखे चोंधीया जाती है। एकांश ने इतना अलीशान कमरा आज तक
नहीं देखा था ये कमरा महल के तरह ही भव्य है। पुरा कमरा सोने , चांदी और कई किमती रत्नों से सजा है। कमरे का हरेक चिज की सजावट आज के जमाने से कई ज्यादा बेहतर और सुंदर था। जिसे दैखकर एकांश चौंक सा गया था
तभी एकांश दीवारों पर उभरे चित्र को देखता है। जो कामसूत्र को दर्शाता था। जिसमे कई चित्र पर लड़का और लड़की संभोग कर रहे थे। एकांश ये सब चित्र देख रहा था के तभी वहां वर्शाली आ जाती है। एकांश वर्शाली को देख कर घबरा जाता है और सोचता है के कहीं वर्शाली ने उसे चिजत्र को घुरते हुए तो नहीं देख लिया इसलिए एकांश अपनी नजर झुका लेता है। वर्षाली एकांश के पास आ कर कहती है---
वर्शाली :- आप इतना शरमा क्यूं रहे हो..?
एकांश चुप ही रहता है। तब वर्षाली चित्र को देख कर कहती है----
वर्शाली :- आप इसे देख कर शर्मा रहे हो एकांश जी।
एकांश :- वो...वो...वर्शाली ..!
वर्शाली मुस्कुराकर कहती है ----
वर्शाली :- अच्छा तो आप इसिलिए शरमा रहे हो। पर
इसमे सरमाने वाली क्या बात है ये चित्रा तो कामसूत्र के है।
एकांश :- पर ऐसे चित्र को दीवार में बनाने का क्या
कारण है।
वर्शाली :- इसे इसिलिए बनाया गया है ताकि प्रेमी जोड़ा यहां पर आके इस चित्र के देख कर मिलन कर सके।
वर्शाली एकांश से पुछती है ----
वर्शाली :- क्या आपने कभी किसी लड़की के साथ
संभोग किया है।
एकांश हिच किचाते हुए कहते हैं----
एकांश :- न..... न .नही वर्शाली ।
एकांश की बात सुनकर वर्शाली हँसने लगती है।
एकांश पुछता है---
एकांश :- इसमे हँसने वाली क्या बात है।
वर्षाली :- आप बात ही ऐसे करते हो।
एकांश :- क्या तुमने कभी सेक्स किया है।
वर्शाली: - क्या सेक्स.! वो क्या होता है..?
एकांश :- सेक्स मतलब संभोग. क्या तुमने कभी संभोग किया है..?
वर्शाली :- नहीं एकांश जी मैंने आज तक किसी पुरुष को नहीं भोगी हूं।
एकांश :- वर्षाली क्या परी जोड़ा यहाँ सिर्फ सेक्स
मतलब संभोग करने के लिए आते हैं ?
वर्शाली :- नहीं एकांश जी। वो तो सब यहाँ पर अपनी
शक्ति को बढ़ाने के लिए आते हैं। पर यहां आने के बाद वो लोग संभोग करते हैं। अन्यथा ऐसी कोई विधि नहीं है।
एकांश पुछता है।
एकांश :- पर तुम यहां क्यों आई हो जबकी तुम्हारे हिसाब से यहाँ सिर्फ जोड़ा ही आ सकता है..?
वर्शाली कहती है--
वर्शाली :- मेैं तो यहाँ आपका इंतजार कर रही थी उसी
दिन से जिस दिन आपने मेरी प्राणो की रक्षा की थे । मैं तो उसी दिन आपकी हो गई थी।
एकांश को वर्शाली की बात ठिक से सुनाई नही देता है तो एकांश वर्शाली से दोबारा पूछता है। ये तुम क्या
कहती रहती हो वर्शाली ।
वर्शाली कहती है ---
वर्शाली :- कुछ नहीं एकांश जी ।
एकांश दबाव बनाते हुए कहता हैं---
एकांश :- बोलो ना क्या बात है।
वर्शाली :- क्या एकांश जी आपको मेरे साथ ऐसे बात करने में अच्छा लगता है क्या..!
एकांश हड़बड़ा जाता है और कहता है---
एकांश :- आ...आआ...आ....! अरे नहीं ऐसी बात नहीं है।
इतना कहने के बाद एकांश अपनी नजर चुराने लगता है और आलोक को देख कर कहता है---
एकांश :- अच्छा वर्शाली ये आलोक अचानक सो कैसे गया..?
वर्शाली हंस के कहती हैं---
वर्शाली :- मैंने आपसे पहले भी कहा था ना के यहां हम परियों का राज चलता है। पर आपके दोस्त को
विश्वास नहीं था इसिलिए मैंने विश्वास दिला दिया।
एकांश को आलोक की चिंता होने लगती है। एकांश वर्शाली से कहता है--
एकांश :- पर ये अब उठेगा कब वर्शाली ..?
वर्शाली :- जब मैं चाहूं तब..!
एकांश एक गहरी सौच में पड़ जाता है। वर्शाली एकांश से कहती है---
वर्शाली :- आप किस चिंता में पड़ गए एकांश जी। आप अपने दोस्त की चिंता करना छोड़ दिजिए जब आप घर जाएंगे तब मैं आलोक को उठा दूंगी।
वर्शाली की बात सुनकर एकांश को राहत मिलता है।
उधर राजनगर गांव में दक्षराज की हवेली के बाहर कुछ
लोग जमा हुए थे। जो दक्षराज से मिलने के लिए आए
थे क्योंकि गांव में दक्षराज की राज चलता था इसिलिए
सब कुछ करने से पहले दक्षराज से अनुमति लेने आए
थे। दयाल और नीलू भी वही पर था।
तभी नीलू कहता है---
निलू :- देखो अभी मलिक आराम कर रहे हैं। आप लोगो को जो कुछ भी बोलना है आप हमें कह सकते हो। हम मलिक तक बात पँहूचा देंगे।
तभी गांव वालो में से एक उठता है और नीलू से कहता है-----
निलू :- हमें मालिक से अभी मिलना है ,आप जकर मालिक को बुला कर ले आईए । हमें उनसे ही बात
करनी है।
सभी गांव वाले एक साथ कहता है---
सभी एक साथ :- हमें मालिक से मिलना है।
तभी दयाल कहता है ----
दयाल :- ठिक है आप लोग शांत हो जाओ मैं जाकर मलिक से कहता हूं।
To be continue......337