Shrapit ek Prem Kahaani - 10 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 10

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 10

चतुर गुस्से से कहता है ।


चतुर :- क्या बोला बे छक्क....... साले रुक तु ।

इतना बोलकर चतुर गुना को मारने जाता है । तो गुना चतुर को रोकते हूए कहता है -----

गुना :- रुक जाओ , रुक जाओ ----- बस यही दोस्ती यही प्यार। 


गूना के इतना पर सभी हंसने लगता है और  फिर गूना सबके लिए चाय बिस्किट लगाने को कहता है । 


गुना :- चाचा सबके लिए चाय बिस्किट ले कर आओ । आज मेरा दोस्त मर्द बना है ।


चतुर समझ जाता है के गुना उसका मजा ले रहा है इसिलिए अब वो बिना कुछ बोले चुप चाप बैठा रहता है ।

सभी बैठकर निलु की और देख रहा था जो कुछ दुर बैठकर केला खा रहा था आलोक सोच रहा था के इससे पिछा कैसे छुड़ाया जाए । 



तभी वहा से वृंदा गुजरती है । वृंदा एकांश को देख कर रुक जाती है और एकांश को देखकर कहती है । 




वृदां :- ये तो वही स्टेशन वाला लड़का है पर ये है कौन और ये यहां क्या कर रहा है। 




वृन्दा एकांश को देखकर उसपर मोहीत हो जाती है ।  वृंन्दा एकांश को देखकर कहती है ।


वृदां :- लड़का है बड़ा हैंडसम । पता करना होगा के कौन है । 



इतना सोच कर वृंदा एकांश को देखने लगती है एकांश भी वृंदा को देखता है । तभी आलोक उन दोनो को एक दुसरे को घुरते हूए देख लेता हैं और देखकर खांसने लगता है। 



आलोक :- अहह ....आह्ह्ह ....! 



जिससे दौनो का ध्यान आलोक के खांसने से हट जाता है। वृंदा की नजर चतुर की और जाती है । वृंदा देखती है के चतुर अपना मुह खोलकर हल्की मुस्कान से वृंदा की और देख रहा है । वृंदा अपना मुह बनाते हूए  चतुर से कहती है । 



वृदां :- हट ----- बेवकूफ...!




वृंदा के इतना कहते ही वहां सब चतुर पर हंसने लगता है । चतुर अपनी बैज्जती होता दैख अपनी नजरे इधर उधर घुमाने लगता है । चतुर गुस्से से एक केला लेता है और एक बार ही बार में पूरे कैले को वह अपने मुह में ठुस लेता है और केले के छिलका को वृंदा को और फैंककर अपनी आंखे बड़ी बड़ी करके देखने लगता है ।



 वृंदा भी छिलके की और ही अपना कदम बड़ाती है और वृंदा अपना पैर छीलके मे रख देती है । जिनसे वो जमीन पर धड़ाम से गिर जाती है ।



वृंदा देखती है के उसने केला के छिलके में पैर रख दिया था । वृंदा गुस्से से इधर उधर देखने लगती है । तो वृंदा की नज़र निलू पर पड़ती है । जो वहा पर बैठकर केला खा रहा था । 



एकांश वृंदा उठाने के लिए जाने लगता है के आलोक एकांश का हाथ पकड़ कर रोक लेता है और एक हल्की मुस्कान देता है जिससे एकांश समझ लेता है । वृंदा गुस्से से उठती है और नीलू के पास जाती है ।







वृंदा नीलू से उसका सारा केला छिनकर फेंक देती है । 


नीलू चौक कर कहता है । 


निलु :- ये क्या कर रही हो तुम..? मैरै सारे कैले क्यों फैंक दिए । 



वृंदा गुस्से कहती है । 



वृदां :- शुक्र मनाओ के मैने तुम्हे नही फेंका ------ तुम पागल हो क्या..? तुम्हें पता नहीं रास्ते में केले का छिल्का नहीं फेकना चाहिए । 



नीलू हैरानी से कहता है ।


नीलु :- क्या मैंने ?



 वृंदा कहती है । 


वृदां :- और नहीं से किसने । यहां और कौन केला खा रहा है । तुम्हारी वजह से में कितनी जोर से गिरी ।



 आलोक और सभी उन दोनो के झगड़े का फयदा उठते हुए वहा से निकल जाता है । आलोक चतुर की तरफ इशारा करके कहता हैं । 
आलोत :- वाह चतुर ! आज तूने क्या दिमाग लगाया एक ही बार में नीलू काका को वही रोक दिया । 



पर चतुर जनता था के ये सब उससे अंजाने में हो गया था ।



चतुर अपना सर ख़ुजाते हुए हंसने लगता हैं । 



चतुर :- हा... हां......! ही...ही....ही....! 



इतने मे  सभी वहां से निकलकर सुंदरवन के पास पहूँच जाता है और सड़क किनारे एकांश अपनी बाइक रोक देता है । 


गुना आलोक से पुछता है । 



गुना :- अब तो ये बता दो के हम जा कह रहे हैं ? और यहां क्यों आऐ है । 



आलोक कहता है ----



आलोक :- हम सब सुंदरवन के अंदर जा रहे हैं।। 


आलोक से सुंदरवन का नाम सुनते ही गुना और चतुर हैरान हो जाता है । 
गुन डरते हूए कहता है ----

गूना :- क्या सुदंरवन तुम दोनो पागल तो नहीं हो गए । जो सुंदरवन जाने की बात कर रहे हो । अरे जो भी वहां पर गया आज तक वो लौटकर नही आया , आया तो सिर्फ उसका कटा सर । ना बाबा ना , मैं वहां नही जाने वाला । म..म मुझे अभी नही मरना है । जानते हो हो ना वहां कौन रहता है या भूल गए तुम । 


एकांश हैरानी से पुछता है ----

एकांश :- कौन रहता है वहां क्या वो कुंम्भन अभी भी इसी वन मे है ? 


गूना कहता है ----


गुना :- हां यार वो अब भी यही है । इसिलिए कोई भी डर से इस जंगल के अंदर नही जाता है ।



एकांस हसते हूए कहता है ----


एकांश :- हा हा ... क्या यार बचपन मे कही गई बात को तुमलोग अब भी मानते हो ।


आलोक कहता है -----


आलोक :- नही एकांश ये मजाक नही है । कुछ दिन पहले एक तांत्रिक उस जंगल के अंदर मे गया था फिर दुसरे दिन सुबह उसका कटा सर जंगल के बाहर मिला ।

 चतुर एकांश से पुछता है ----

चतुर :- एकांश तू ये बताता तुझे अचानक ये सुंदरवन को क्यों जाना चाहता है ? 


 एकांश उन सबको रात वाली कहानी बताता है जिससे सुनकर चतुर कहता है ---- 


चतुर :- तु रात भर जंगल में रहकर तू सूबह अपने कमरे से निकलाता है और तुझे ये सब सच लगता है और तूने ये सच मान कैसे लिया और बिना सौचे समझे यहां इस जंगल के अंदर जाने को सोच लिया , तु सच मे पागल है और आलोक तू ! तू तो सब जनता है ना के जंगल के  अंदर कौन रहता है । एकांश तो यहां बहुत साल बाद आया है ।

चतुर फिर कहता है --

चतुर :- सिर्फ एक सपना के कारण हम जोखिम नहीं ले सकते । क्या पता ये उस कुम्भन की कोई माया हो ।


एकांश कहता है -----


एकांश ---- पर ये सपना नहीं सच है चतुर ।


 एकांश चतुर को अपने जूते में लगा मिट्टी दिखा कर कहता है ----

एकांष :- ये देख मेरे जूते को अगर में घर में था तो मेरे जूते में ये मिट्टी कहा से आई । 


एकांश अपना मोबाइल निकलता है जिसमे से एकांश ने एक फोटो निकाली और सब को दिखाकर कहता है -----

एकांश :- ये देखो । अब बोलो हमे जंगल मैं जाना चाहिए के नहीं और एक बात बता , मुझे उसी लड़की की सपना क्यों आया जिससे मैंने सालो पहले देखा था ।


 सभी मोबाइल में फोटो को देखता है जिसमे एकांश के माथे पर लिपस्टिक का निसान था जो किसी लड़की का लग रहा था । 

चतुर एकांश से मज़ाक करते हुए कहता हैं ----


चतुर :- सिर्फ लिपस्टिक का ही निसान है या और भी कुछ है जो तुम बता नहीं रहे हो और बेहोश होने का बहाना कर रहे हो ताकी हमे कुछ बताना ना पड़े ।


एकांश को पता था के चतुर उसका टांग खिच रहा है ।इसिलिए वो चतुर के बात को जल्दबाजी में टाल देता है और कहता है ---


एकांश :- अब चलें या और भी कुछ बताना है । 


गुना और चतुर हां में सर हिलाता है और गुना कहता है ----


एकांश :- अब जब तु इतना फोर्स कर रहा है तो अब तो जाना ही पड़ेगा यार भाभी का जो सवाल है तुझे उनके पास तो ले जाना पड़ेगा ना । 


एकांश हल्की मुस्कान देकर कहता है ----

एकांश :- पागल....! 


इतना बोलकर सब अपनी बाइक वही खड़ी करके जंगल के अंदर जाने लगता है ।


उधर वृंदा मुह बनार अपने घर आती है जहां उसकी मां उसके कपड़े में लगे मिट्टी को देखती है और कहती है ----


वृदां की मां :- वृंदा ये तुम्हारे कपड़े पर इतनी मिट्टी कहां से लग गई हैं ? 

तभी वहां चट्टान सिंह भी आ जाता है । चट्टान सिंह को देखना वृंदा रोनी सूरत बनाकर कहती है ----


वृदां :- देखीए ना पापा क्या हाल हो गया मेरा । 


चट्टान सिंह वृंदा को देखकर हंसने लगता है और कहता है------ 


चट्टान सिहं :- क्या बेटी इतनी बड़ी हो गई फिर भी मिट्टी से खेल रही हो । 


चट्टान सिंह की बात सुनकर वृंदा गुस्सा हो जाती है और कहती है -----


वृदां :- क्या पापा में गिर गई थी । मैं कोई बच्ची नही हूँ जो मिट्टी से खेलूगीं ।


वृंदा की बात सुनकर सोनाली कहती है ----


वृदां की मां :- हे राम...! गिर गई थी पर कहा ? 


वृंदा उन्हे सारी बात बताता है । वृंदा की बात सुनकर चट्टन सिंह गुस्से से कहता है ----

चट्टान सिंह :! उस नीलू की तो में...! उसकी इतनी मजाल के वो तेरे साथ बदतमीजी करे । मैं उसे नही छोड़ुगां , मैं अभी उसे .....


तभी वृंदा चट्टान सिंह की बात को बिच मे ही काटकर कहती है ----


वृदां :- उसकी कोई जरुरत नहीं है पापा । मैंने उसे अच्छी तरह सबक सिखा दिया है । 


तभी चट्टान सिह खुश होते कहता है ----- 


चट्टान सिंह :- मेरी बहादुर बेटी..! बहोत अच्छा किया तुने जो उसे सबक सिखाया । ऐसे लोगो को सबक सिखाना बहोत जरुरी है । अच्छा ठीक है अब जाओ और जा के फ्रेश हो जाओ हमें शाम को भानपुर जाना है । 


वृदां की मां सोनाली पुछती है -----


सोनाली :- अचानक ये भानपुर क्यो !  




चटान सिंह कहता है ----


चट्टान सिंह :- वो इंद्रजीत का बेटा एकांश आया है ना । लंदन से डॉक्टर की पढ़ाई करके तो गांव में अस्पताल खोलने की खुशी में उन्होनें आज घर में पार्टी रखी है और हम सबको बुलाया है ।


To be continue..... 124