Shrapit ek Prem Kahaani - 23 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 23

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 23

वर्षाली हंसकर कहती हैं--


वरशाली :- आपके सारे प्रश्नों का उत्तर है पर पहले आप घर के भीतर तो आईये। 



एकांश हैरानी से पुछता है---


एकांश :- क्या घर और यहां ..? पर यहां पर तो मुझे कोई घर दिखाई नहीं दे रहा है। 


वर्षाली हंसने लगती है और कहती है---


एकांश :- आप आओ तो सही आपको 
मेरा घर भी दिखने लगेगा। 


इतना बोलकर वर्षाली झरने की और बढ़ने लगती है। आलोक और एकांश भी वर्षाली के पीछे जाने लगता है। उधर हवेली में वृंदा रात में घटी घटना के बारे में सौच रही थी और मन ही मन बड़बड़ा रही थी----


वृदां :- क्या एकांश भी मुझसे प्यार करता है ? कल रात को अगर वो चाहता तो मेरे साथ वो सब कर सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया। एकांश सायद कहने से डरता है। पर क्यूं एकांश तुम क्यों डर रहे हो बोल दो ना आके मुझसे के तुम भी मुझसे प्यार करते हो। पता नहीं ये लड़के प्रपोज करने से डरते क्यों हैं। प्यार करते हो तो बोल दो ना। 



वृंदा एक गहरी सांस लेती हैं और कहती हैं---


वृदां :- हम्म...! इसमे इन बेचारे लड़कों का क्या दोष हम लड़किया ही लड़को के सामने ऐसे रियेक्ट करते है के उन्हे पता ही नहीं चलता के हम क्या चाहते हैं। 


तभी संपूर्णा वहा पर आ जाती है और कहती है--


संपूर्णा :- कौन क्या चाहती है वृंदा.. जरा मुझे भी बता। 



संपूर्णा को देख वृंदा खुश हो जाती है और कहती है----


वृदां :- कुछ नहीं यार मेैं बस एकांश के बारे में सोच रही थी। 



संपूर्णा कहती है--- 

संपूर्णा :- ज्यादा सोच मत और जल्दी से भाई को प्रपोज कर दे वर्ना तुझसे पहले कोई और ना प्रपोज कर दे भाई को।


 वृंदा कहती है----


वृदां :- हां यार पर कैसे करूं। संपूर्णा कहती है। कैसे करू का क्या मतलब। बस भाई के पास जा और बिंदास बोल डाल। वृंदा कहती है। तुझे तो सब पता है तूने इतनी आसनी से कह दिया जैसै़े ये सब बोलना कितना आसन है।



 संपूर्णा :- और नहीं तो क्या। मैंने भी तो ऐसे ही किया कल रात को। 


संपूर्णा की बात सुनकर वृंदा हैरानी से पुछती है---


संपूर्णा: - क्या..! तूने कल रात को प्रपोज किया। पर किसे..? 



संपूर्णा सरमाते हुए कहती हैं----


संपूर्णा: - आलोक से ! जब तुम और भाई आपस में बातें कर रहे थे तब। 


वृंदा :- वाह यार तू तो बहुत तेज निकली। पर आलोक ने क्या कहा..? 


संपूर्णा :- उसने भी हां कहा दिया। पहले उसे भाई के कारण मना कर रहा था। कह रहा था के भाई मेरा दोस्त है और मैं उसके भरोसे को तोड़ना नहीं चाहता। पर जब मेैने समझया और उसे किश किया तब उसने भी हां कर दिया ।


 वृंदा :- क्या , किश भी हो गया। 



संपूर्णा सरमाते हुए कहती हैं----


संपूर्णा: - हां यार। हम तो और भी कुछ कर रहे थे पर चतुर ने आ कर सब चौपट कर दिया ।


 वृंदा :- तो क्या चतुर ने तुम दोनो को देखा था।? 

संपूर्णा :- नहीं यार उसे मुझे नहीं देखा तब तक मैं बिचाली के अंदर चुप गई थी। पर अगर वो आज ना आता तो बस अब सब होने ही वाला था। 



वृंदा :- अच्छा...! ये चतुर भी ना बहुत गलत टाइम पे एंट्री मारता है वरना तेरा प्यार आज अधुरा नही रहता। 



तभी वहां पर चतुर और गुना आ जाता है। चतुर संपूर्णा से कहता है----


चतुर :- संपूर्णा अब हमलोग निकल रहे हैं। एकांश आये तो उसे बता देना। 



संपूर्णा :- अरे भैया पर नास्ता तो कर के जाओ।


 गुना :- चाची ने हमें करा दिया अब हम लोग निकलते हैं। ठीक है।



 इतना बोलकर दोनो वहां से चला जाता है। इधर आलोक और एकांश वर्शाली के साथ झरने के पीछे चले जाते हैं। जहां पर अंदर जाने का एक रास्ता था। आलोक एकांश से पुछता है---


आलोक :- ये हमलोग कहां जा रहे हैं। 



एकांश :- वो तो आगे जाकर पता लगेगा। 



दोनो महल के अंदर पँहुच जाता है। अंदर जा कर दोनो की आंखें फटी के फटी रह जाती है। क्युंकी अंदर महल में दोनो ने जो देखा वो कभी सपने में भी कल्पना तक नहीं किया था। वो एक भव्य महल था एक ऐसा महल जिसकी कभी कल्पना भी नहीं किया जा सकता। महल के दिवारो पे बेश किमती रत्न जड़े थे । चारो और दीवारें रत्नो से सजे थे। महल को देख कर एकांश वर्शाली से पुछता है---


एकांश :- वर्शाली ये तुम हमें कहा ले कर आ गई। ये कोनसी जगह है..?




वर्षाली :- ये मेरा घर है एकांश जी।


एकांश :- वो तो में भी देख पा रहा हूं। पर ऐसा महल जो अदभुत है। ये किसी इंसान का तो नहीं हो सकता है , किसका है ये है और इतने बड़े महल में तुम अकेली रहती हो ।


वर्शाली: - नहीं यहां पर मैं अकेली नही रहती यहां पर मैं , मेरे बाबा, और मेरी बहन हर्शाली। 



आलोक :-तो अभी वे सब कहा पर है वर्षाली। 



आलोक के सवाल से वर्षाली कुछ जवाब नहीं देता। तब एकांश वर्षाली के करीब जाकर कहता है---


एकांश :- वर्षाली एक बात पुछु तुमसे। 



वर्शाली: - हां एकांश जी बोलिये ना। 


एकांश :- तुम इंसान नहीं हो ना। ? 


वर्षाली चुप रहती है। एकांश फिर पूछता है ---

एकांश :- क्या तुम कोई देत्य कन्या हो ।


 वर्शाली :- न मैं मनुष्य हूँ और ना हीं देत्य। 


आलोक घबराते हुए कहता है----


आलोक :- तो फिर तुम कौन हो। ? 



वर्शाली: - मैं परी हूँ । 



वर्षाली के इतना कहने से आलोक और एकांश हैरान रह जाता है। 




एकांश कहता है----


एकांश :- क्या...? परी , तुम सच में परी हो वर्शाली।


वर्शाली :- हां एकांश जी , ये सच है । 


एकांश :- पर परी इस धरती पर , मतलब तुम परियां भी पृथ्वी पर रहती हो ?




 वर्शाली :- नहीं एकांश जी हम परियां पृथ्वी पर नहीं 
रहते हैं हम तो अपने लोक में रहते हैं। पर यहाँ पर 
हम प्रत्येक वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी में पृथ्वी पर आते हैं 
और फिर सुबह होने के बाद अपने लोक चले जाते हैं। 



आलोक :- पर तुम परियां सिर्फ कृष्णा 
जन्माष्टमी में ही क्यों आती हो ?



 वर्शाली: - ईश्वर ने पृथ्वी को प्राकृतिक सोंदर्य दिया जो किसी और लोक में नहीं है। इस पृथ्वी बहुत सी ऐसी राज है और अलौकिक शक्ति है जो तुम मनुष्य को नहीं पता।



 एकांश हैरानी से पूछता है। 


एकांश :- क्या..? आलोकिक शक्तियाँ.!


वर्शाली: - हां अलौकिक शक्तियाँ और इसी शक्तियों के कारण हम परीयां यहां पृथ्वी पर प्रत्येक जन्माष्टमी पर आते हैं।



 एकांश फिर वर्षाली से पुछता है----


एकांश :- पर जन्माष्टमी पर हीं क्यूं वर्शाली ? 



वर्शाली :- क्योंकि जन्मांष्टमी भगवान श्री कृष्ण का 
जन्म दिन है और श्री कृष्ण प्रेम के प्रतीक है और उस 
दिन स्वर्ग का द्वार भी खुल जाता है वहा से अमृत 
की किरने झरने के पानी पर आता है। उसी समय 
परीयां प्रत्येक वर्ष अपने पुरुष साथी के साथ यहाँ आते 
हैं और तब परी जोड़ा उस समय यहां आकर झरने के 
जल में स्नान करता है ताकी उन्हें अलौकिक शक्ति 
प्राप्त कर सके और स्नान करने के बाद महल में रात 
बिताकर अपने लोक वापस चले जाते हैं। 




एकांश :- जोड़े के साथ आता है का क्या मतलब वर्शाली ..?



 वर्शाली :- मतलब अपने पुरुष साथी के साथ एकांश 
जी। 


इतना सुनकर एकांश उदास मन से वर्षाली से पुछता 
है---



एकांश :- तो क्या तुम भी अपने साथी के साथ आई हो वर्शाली ..? 


वर्शाली: - नहीं एकांश जी मेरा कोई पुरुष साथी नहीं है। अभी मेरा विवाह नही हूआ है ।


 वर्शाली धीरे से कहती है--- 


वर्शाली :- मैं यहाँ बस आपके लिए आई हूं।

To be continue......37