Shrapit ek Prem Kahaani - 5 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 5

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 5

आज से तीन माहिना तक मतलब जन्माष्टमी तक इसका मृत्यु योग चलेगा । इन तीन महिनो तक इस पर काल भारी रहेगी ।



इतना सुनकर इंद्रजीत एकांश और गिरी तीनो के होश उड़ जाते हैं । इंद्रजीत घबरा कर कहता है ।




 ये..ये..ये..ये आप क्या कह रहे हैं बाबा ? मृत्यु योग ! मेरे बेटे पर ? साधु बाबा कहता है । हाँ बेटा मृत्यु योग । साधु बाबा एकांश को अपने पास इशरे से बुलाता है और कहता है ।




बेटा मेरी बात सुनकर तू घबरा गया क्या ?




एकांश कहता है ।



नहीं बाबा में घबरा नहीं रहा हूँ । मैं तो बस ये सोच रहा हूं के ऐसा मेरे साथ ही क्यों ? जबकी मैने आज तक किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा और बाबा मुझे अपनी चिंता नहीं है । मुझे चिंता है अपने पापा के सपनों का जो मुझे डॉक्टर बनाकर आज इस गांव में लेकर आया है । इन गांव वालों की सेवा करने के लिए ।




साधु कहता है । हम्म ...! साधु काली मां के चरण से एक डोरी निकाल कर लाता है और एकांश से कहता है । बेटा अपनी दहिना हाथ आगे करो ।


अपनी दहिना हाथ आगे कर देता है । साधु  डोरी को एकांश के हाथ में बांध कर कहता है । बेटा घबऱाओ मत मैने कहा ना की तुम पर काली मां का कृपा है वो कुछ कुछ ना कुछ तेरे लिए सौच कर रखी है । पर एक बात का ध्यान रहे बेटा ये डोरी जो मैंने तुम्हें बांधी है इसे अगले 3 महिनो तक अपने से अलग मत करना । चाहे कुछ भी हो जाए पर डोरी तुम्हारे पास होनी चाहिए तो कोई भी ताकत तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।



 

बाबा इंद्रजीत से कहता है । जाओ इंद्रजीत चिंता मत करो ये डोरी तुम्हारी बेटे की रक्षा करेगी ।


बाबा को प्रणाम करता है और कहता है । बाबा की जय हो और फिर काली के सामने अपना माथा टेक कर इंद्रजीत कहता है । हे मां मेरे बेटे की रक्षा की जिम्मेवारी अब आपकी है । माँ एकांश की रक्षा करना ।




सभी काली मां को प्रणाम करके वहा से घर की और जाने लगता है । भानपुर जाने के लिए सुंदरवन के किनारे होना जाना पड़ता है । वही एकांश की नजर सड़क किनारे एक पेड़ पर जाती है जहां पर एक लाल पत्थर रखा था और हम पेड़ पर बहुत सारे धागे बंदे हुए थे ।




एकांश ये देख कर अपने पापा इंद्रजीत से पुछता है । पापा ये इस पेड़ पर ऐसे धागे क्यों बंधे हैं ? पहले तो यह ऐसा कुछ नहीं था । क्या यहां कोई पूजा होती है ?




एकांश की बात सुनकर इंद्रजीत कहता है । हाँ बेटा ये हमारे गांव के रक्षा कवच है ।



एकांश फिर कहता है । रक्षा कवच ?



इंद्रजीत कहता है हाँ बेटा रक्षा कवच । पर तू ये सब छोड ये सब में तुझे बाद में बताऊंगा ।



इतना बोलकर इंद्रजीत चुप हो जाता है पर एकांश के मन में अभी भी काई सारे सवाल पर वो अभी पुछना सही नहीं समझा । कुछ देर बाद एकांश अपने घर पहुँच जाता है जहां गेट पर पहले ही एकांश की मां मीना, चाचा सत्यजीत, चाची मीरा और बहन संपूर्ण खड़ी थी । मीरा अपने हाथ में आरती की थाली पकड़ी हुई थी ।




 मीरा का कोई बेटा नहीं था इसिलिए मीरा एकांश को अपने बेटे जैसा ही प्यार करती थी ये बात मीना और इंद्रजीत जनता था । इसिलिए एकांश का हर काम एकांश के चाचा चाची ही करता था । ऐकांश कार से उतर कर पहले अपने चाचा, चाची के पैर छूता है फिर अपने मां का ।



 क्यूंकी एकांश भी अपने चाचा, चाची को इतना प्यार और सम्मान करता है । मीरा एकांश की आरती उतरती है और कहती है --


मीरा :- मेरे बेटे को हर बुरी बला से दूर रखना ।


तभी एकांश की नजर सड़क के उस पार जाता है , जहां पर एकांश को एक लड़की लाला साड़ी पहने दिखाई देता है । एकांश को उसका चेहरा साफ नही दिख रहा था बस उसकी कमर दिख रहा था । जैसे ही एकांश की मजर उस पर पड़ी वो लड़की वहां से चली जाता है ।


एकांश मन ही मन सौचता है ---



एकांश :- ये लड़की कौन थी , जो हमे छुपकर दैख रही थी ?

 एकांश को घर के अंदर ले कर चली जाती है सब घर के अंदर चला जाता है । उधर वृंदा को भी अपने गांव के बाहर रास्ते में उसी तरह का पेड़ और उसके पास रखी लाल शिला पत्थर दिखाई देता है पर वृंदा को सब ,पहले से ही पता होता है । इसिलिए वृंदा बिना कोई सवाल किये अपने घर चली जाती है । शाम का वक्त था । एकांश अपनी चाची और चाचा के साथ किचन में था । जहां मीरा एकांश के लिए पकोड़े बना रही थी । तभी हॉल में बैठे इंद्रजीत अपनी पत्नी मीना से पुछता है ।

इंद्रजीत :- ये एकांश कहा गया ? अपने दोस्तों के साथ बहार गया है क्या ?

 मीना हंस कर कहते हैं ।




मिना ---- नहीं जी । आपको लगता है के मीरा और सत्यजीत इतनी जल्दी एकांश को कहीं जाने देंगे ? वो लोग कब से किचन में लगे हैं एकांश को तब से दोनो मीलकर कुछ ना कुछ बना कर खिलाए जा रहा है और अगर कोई समान कम पड़ जाती है तो वो आपके छोटे भाई बाजार से लेकर आ जाता है । बस यही चल रहा है सूबह से । 




इंद्रजीत कहता है इसिलिए सत्यजीत भी सुबह से मेरे पास नहीं आया है । इतना बोलकर दोनो एक दसरे को देख कर हंसने लगता है। उधर किचन में एकांश पकौड़े खा रहा था । तभी वहा संपूर्णा भी आ जाती है और एकांश के हाथ में पकोड़े को देख कर अपनी जीभ को अपने होंठ पर फिराते हुए कहती हैं । 

संपूर्णा :- वाह भैया पकौड़े..! 

इतना बोलकर संपूर्णा अपना हाथ एकांश की थाली की और बढ़ात है तो मीरा संपूर्णा का हाथ पकड़ लेती है और कहती है ।


मिरा :- क्यू रे तू तो रोज़ खाती है आज मेरा बेटा इतने दिनों बाद यहां आया है और तू उसे़ खाने नही दे रही है ।

 संपूर्णा मुह बनाते हुए कहती हैं । 



संपूर्णा :- क्या माँ सब भैया ही ख़ायेंगे क्या ? मुझे भी तो भुख लगी है ।




 संपूर्णा की बात सुनकर मीरा कहती है । 

मिरा :- अच्छा ठीक है वहा देख वहा पर रखी है जा के ले लो थोड़ी सी । 

संपूर्णा को देख कर एकांश हंसता है  और कहता है।

एकांश :- थोड़ी सी ही लेना शैम्पू..! ज्यादा मत ले लेना । 


शंपूर्णा को शैम्पू बुलाने पर संपूर्णा रोनी सूरत बनाकर अपनी मां मीरा से कहती है... 

संपूर्णा :- अहान आह... देखो ना मां भैया मुझे शैम्पू कह कर बुला रहे हैं । 

पर संपूर्णा की बात का मीरा कोई जवाब नहीं देती है तो संपूर्ण अपना मुह बनाकर वहा से चली जाती है। तभी एकांश का फोन रिंग होता है जिसमे चतुर का कॉल आ रहा था । एकांश फोन उठाता  है ।

एकांश :- हां चतुर बोल..!

 उधर से चतुर की आवाज आती है। 

चतुर :- कहा हो यार तुम, हां.. सुबह से कितनी बार तुझे कॉल कर चुका हूं पर तू फोन ही रिसीव नहीं कर रहा । दोस्तों को भूल गया क्या लंदन जाके ? "बस यही दोस्ती यही प्यार.".!!! 

चतुर फिर कहता है । 

चतुर :- क्या यार हम तीन कब से तेरा इंतजार में हैं । अब देर मत कर जल्दी आ जा ।

 एकांश हिचकिचाते हुए जवाब देता है ।

एकांश :- अ..अ...अ़़....यार आज में घर से नहीं निकल सकता । चाची आज मुझे कहीं जाने नहीं देगी । मैं कल तुमलोगो से मिलता हु ठीक है ! 

तभी फोन से आलोक की आवाज आती है । 

आलोक :- कोई बात नहीं यार तू टेंशन मत ले कल मिलते हैं ।


तभी फोन आलोक से चतुर ले लेता है और कहता है ।

चतुर :- क्या कल आयेगा । सुन एकांश तू आज और अभी आ रहा है, ठीक है ।

 एकांश को समझ में नहीं आ रहा था के वो क्या करे तब एकांश को परेसान देख मीरा समझ जाती है के एकांश को उसके दोस्त परेेसान कर रहा है । मीरा फोन एकांश से ले लेती है और फोन को स्पीकर में दाल देती है । उधर से चतुर की आवाज आती है । 


चतूर :- तुम्हारे आने की खुशी में हम लोगों ने धापा का जुगाड़ किया है। सोचा सब साथ मिल कर धापा पियेगे। (धापा एक कोड शब्द है जो खजूर के पेड़ से निकले रस यानी ताड़ी को कहते हैं ये धापा इसलिय कहते हैं ताकी सबको पता न चले।) पर तुम हो के मिलने से मना कर रहे हो। बस यही दोस्ती यही प्यार।

 धापा शब्द सुनकर एकांश अपने माथे पर हाथ रख देता है और सोचता है आज तो गए काम से, ये चतुर आज मरवायेगा । चतुर की बात सुनकर मीरा अपनी एक भोये ऊपर करके कहती है। 

मिरा :- ये प्यार व्यार छोडो और ये बताओ के ये धापा क्या है ? और ये मेरे बेटे को क्या धापा वपा पिलाने की बात कर रहे हो । 

मीरा की बात सुनकर चतुर या सबी दोस्त हक्का बक्का रह जाता है। चतुर झट से फोन गुना को पकड़ा देता है। गुना डर ​​से चुप चाप रहता है। फिर मीरा की गुस्सा वाली आवाज आती है। 


मिरा :- क्या हुआ चुप क्यू हो गए। 

मीरा की गुस्सा वाली आवाज सुनकर गुना फोन को चतुर को थमा देता है। चतुर आलोक को फोन लेने को कहता है पर आलोक ना में अपना सर हिलाकर मना कर देता है।  सभी हलके आवाज में चतुर को गली देता है। 

सभी :- साले तेरी वजह से आज हम लोग फंस गए। अब तू ही संभास।

 तब चतुर हकला कर कहता है। 

चतुर :- आ...आ...आ...आ...चा...चा...चाची आप वहा...आ..कैसे.? 

मीरा कहती है।

मिरा :- वो सब छोड़ो और धापा का मतलब बताओ मुझे, धापा का मतलब बियर है ना? 

चतुर कुछ समझ नहीं पाता के क्या बोले । तभी एकांश बात को संभलते हुए मीरा से कहते हैं। 

एकांश :- आ..आ.. चाची धापा नहीं। चतुर के कहने का मतलब है के धपा धप खायेंगे  पियेंगे।  अ... अ.. हा....हा़...! 

मिरा फिर कहती है। 

मिरा :- और पियेंगे का क्या मतलब था। 

एकांश झट से कहता है।

एकांश :- वो तो सब कहते हैं ना के खायेंगे पियेंगे। उसी तरह चतुर ने भी कहा बस। 

इतना बोलकर एकांश एक गहरी सांस लेती है और चुप हो जाता है। चतुर डर से फोन कट कर देता है। मीरा फोन में कहती है। 

मिरा :- हेलो....हेलो.....! 

एकांश कहता है। 

एकांश :- चाची वो फोन कट हो गया है। 

मीरा फोन को रख कर कहती है। बत्तमीज कही का। एकांश मन में बड़बड़ाता है। उफ्फ आज तो बच गया। तभी वहा सत्यजीत आके बिना ईधर उधक देखे एकांश से कहता है। 

सत्यजीत :- एकांश आज रात का जुगाड़ हो गया है। 

एकांश सत्यजीत को इशारे से कहता है के चुप रहिये यहा चाची है। पर सत्यजीत कहा सुनने वाला था। वो बड़ी खुशी से किचन में आए और एकांश से कहने लगे। 

सत्यजीत :- एकांश गिरी ने फोन किया था। वो धापा लेकर आ रहा है।


To be continue......50