Shrapit ek Prem Kahaani - 1 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 1

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 1

अमावस्या की रात थी और रात के 11 बज रहे थे । भानपुर गांव का एक तांत्रिक अपनी तात्रिकं साधना करने के लिए सुंदरवन की तरफ जा रहा था । गांव मे ये मान्यता थी के जो कोई भी तात्रिकं अमावस्या की मध्य रात्री को साधना करेगा उसे असिम शक्ती के साथ साथ अपार धन भी प्राप्त होता है ।


 घना जंगल, चारों ओर धुंध, चाँद गायब, केवल मशालों की मद्धम रोशनी

> "अमावस्या की रात थी… जब पूरा भानपुर गाँव अपनी साँसें थामे बैठा था।" क्योकि हर अमावस को भानपुर मे आता है एक कहर मौत का कहर ।


गांव मे सभी सांत और डर से चुप चाप अपने घर के अदर बैठे थे तभी वहां पर तेज वहां चल रही थी -----


> हुssss… हुssss (तेज़ हवा की आवाज़)


सुंदर वन जो एक रहस्यमय और डरावना जंगल है उस के अंदर एक पुराना झोपड़ा, जिसके दीवारों पर लटकते नींबू-मिर्च, लाल धागे, और तांत्रिक मंत्रों के चिह्न थे ।

> "जंगल के बीच… एक साधक अपनी सबसे भयानक साधना में लीन था। ऐसी साधना जो इससे पहले किसी ने नही किया था ।
तांत्रिक 30 वर्षीय, सांवले रंग का, आँखें बंद, शरीर पर राख, सामने अग्नि जल रही है)
तांत्रिक वहां पर बैठकर मंत्र उच्चारण कर रहा था ----
तांत्रिक (मंत्रोच्चार):

> “ॐ ह्रीं कालिके नमः… देहि मे सिद्धि… देहि मे मोक्ष…”


> धूंsss… धूंsss (अग्नि की लपटें उठती हैं)

कुछ दैर मंत्र पड़ने के बाद वहां पर अचानक बिजली चमकती है — हवा में ऊर्जा की लहर और मंजर भयानक हो जाता है ।

" आज ये तांत्रिक वो साधना कर रहा था जिससे आज से पहले किसी मनुष्य ने अब तक पूरी न की थी… आज अपने अंतिम चरण में थी।"



तभी आसमान से लाल और चांदी की रोशनी फैलती है, फूल झरते हैं

> छन्न्न्न्न्न्न्…!


> "और तब… वह उतरी — जैसे चाँदनी ने स्वयं रूप धरा हो।"
निचे उतरती है , वो परी लाल वस्त्रों मे थी जिसकी सुंदर, नाभि दिखाई दे रही है, उसकी आंखें नशीली और होंठ गुलाबी थे ।


> "वह थी हर्शाली — अप्सरा नहीं, एक मरीचिका, जो साधना की परीक्षा लेने आई थी।" क्योकी इस साधना मे साधक को संयम और ब्रह्मचार्य का पालन करना पड़ता है , जिसकी परीक्षा लेने हर्शाली आई थी ।

वो परी तांत्रिक के चारों ओर घूमती है, मुस्कराते हुए कहती है ---

परी: > “ ऐ साधक तुने इस साधना से देवताओं को भी ललकारा है… क्योकी ये कोई साधारण साधना नही है , जो अब तक कोईसनही कर पाया वो तुने किया अब देखती हूँ के तेरी तपस्या कितनी सच्ची है , आंखो खोल और दैख मुझे ।"

तांत्रिक की आंखें खुलती हैं, पर चेहरा संयमित , तांत्रिक उस परी को दैखकर , उसे दैखते ही रह जाते है । क्योकी परी की सुंदरता उस तात्रिक को विचलित कर रहा था तब वो तात्रिकं अपने मन को समझाता है -----

तांत्रिक :-> “मेरा लक्ष्य मोक्ष है… मोह नहीं।”


तब परी धीरे से झुककर उसकी आंखों में झांकती है और कहती है ----
परी (मंद स्वर में): > “हर साधक यही कहता है… जब तक देह की ज्वाला उसे छू न ले।”


इतना बोलकर परी उसके चारों ओर नाचती है, जिससे और अग्नि तेज़ होती जाती है

> धूंssss… धूंsss…


साधक परी की सुंदरता को दैखकर वो काम से वश मे आ गया था । परी के शरीर की बनावट को दैखकर वो साधक सारे नियम भूल गया था ।
इस साधना के लिए साधक को ब्रह्मचर्य, मौन व्रत, और मन की शुद्धि रखनी पड़ती है। तभी वो उससे मन चाहा वरदान प्राप्त कर सकता है । पर अगर उसने अपना ब्रह्मचर्य तोड़ा तो उसका विनाश निश्चित था ।



> “वह नृत्य किसी मंत्र से कम नहीं था — एक ऐसी खुबसुरत , मनमोहक नृत्य जिससे हर कदम पर साधक का संयम पिघलता जा रहा था।”

तांत्रिक के माथे से पसीना टपकता है, और उसके होंठ कांप रहे थे , वो कोशिस तो बहोत कर रहा था पर परी की सुंदरता उसे वश मे रहने नही दे रहा था । 


तांत्रिक (मन ही मन): > “मत छू… मत देख… यह माया है…सिर्फ माया ”

तांत्रिक इतना सौचता ही है के तभी परी उसके गले में हाथ डाल देती है

परी (फुसफुसाते हुए): > “क्या अब भी तेरा मन शांत है…?” तुझे अब क्या चाहिए । मैं या फिर कुछ और ......!

 
तांत्रिक अब अपनो वश मे नही था वो अब भूल चुका था के वो साधना क्यो कर रहा था । तांत्रिक का मन अब की खुबशरती को निहार रहा था और उसे पाना चाहता था ।

तभी हर्शाली तांत्रिक के होंठ पर उसके होंठों से मिलते हैं — पृष्ठभूमि में मंत्र टूटते हैं
> टन्न्न्न्न्न्… (घंटी टूटने की आवाज।
> “ उसी एक चुंबन ने उसकी सारी तपस्या भस्म कर दी…”



तभी अचानक रोशनी बुझती है, और वो परी साधक से अलग होकर कहती है ---


परी: > “तूने अमरत्व की जगह वासना चुनी…मैं तो तेरा परीक्षा लेने आई थी , मै वो नही जो तु समझ रहा है , ये साधना इतना आसान नही है अगर कोई साधक इसो पूरा कर भी लेता है तो पहले मैं मारीचीका आकर उस साधक के संयम का परीक्षा लेती हूँ पर तु अपने पर काबू नही रख पाया , तुझे ब्रह्मचार्य का पालन करना था जो अब टूट चुका है । अब ना तेरा तप पूरा होगा और ना तेरी साधना । 


इतना बोलकर वो परी हसने लगती है ----- हा हा हा ।


साधक को अपने किए पर बहोत पछतावा होने लगता है , क्योकी उसका सारा मेहनत बेकार हो गया था , साधक को उस मरीचिका पर बहोत गुस्सा आने लगा था क्योकी उस मरीचिका ने उसका मेहनत बेकार कर दिया था ।

वो मरीचिका अब वहां से जाने लगती है तब साधक उसे पकड़ता है और अपने बाहों मे खिंच लेता है ---

तब वो मारीचीका हर्शाली कहती है ---

हर्शाली :- छोड़ मुझे मुरख , वरना मैं तुझे मार डालूंगी ।

वो साधक कहता है -

साधक :- तुने मेरी सारी मेहनत पर पानी फेरा , मेरी ब्रम्हचार्य की परीक्षा ली , पर जब मेरा ब्रह्मचार्य टूट ही गया है तो क्यो ना तुझे पुरी तरह से भोगा जाए ।


To be continue......9