Shrapit ek Prem Kahaani - 9 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 9

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 9



आलोक दक्षराज की और देखता है और कहता है । 




आलोक :- वो एक काम है इसिलिए मुझे जाना होगा ।


 इतना बोलकर आलोक वहा से चला जाता है ।







दक्षराज नीलू को इशारा करके आलोक के पिछे जाने कहता हैं तो नीलू भी वहा से आलोक के पिछे चला जाता है । दक्षराज अपने चादर के अंदर से मणि को निकलाता है उसे फिरसे देखने लगता है । 





इधर आलोक एकांश को लेकर बाइक से सुंदरवन की और जा रहा था । के तभी आलोक को उसके पिछे नीलू दिखई देता है जो इन दोनो का पिछा कर रहा था। आलोक अपने  मन में गुस्सा होकर सौचाता है । 



आलोक :- इस नीलू की तो...! ये यहां भी पहूँच गया । अगर इसने हम लोगो को सुंदरवन जाते हुए देख लिया तो फिर बड़ी मुश्किल हो जाएगी ये सब जा कर बड़े पापा को बता देगा  उम्म्म ...! इससे पिछा कैसे छुड़ाउ ।










आलोक इतना सोच ही रहा था के तभी रास्ते में गुना और चतुर चाय दुकान में मिल जाता है । वो दोनो चाय पी रहा था । तभी  गुणा एकांश और आलोक को बाइक से जाते हुए देखता है और कहता है । 



एकांश :- कहां जा रहे हो यार..! ऐसे अकेले अकेले कहाँ चल दिए । गुणा एकांश से कहता है। 


गुणा :- वाह यार कल से हम लोग तेरी राह देख रहे है ------ के कब तुम आओगे और तुम हो के हमें बिना बताए ऐसे अकेले अकेले घूम रहे हो? 



एकांश कुछ बोलता उससे पहले चतुर गुना की बात पर हामी भरते हुए कहता है ।



चतुर :- हां यार कम से कम एक फोन तो कर दिया होता हम खुद आ जाते । वाह अब यही दोस्ती यही प्यार ।




आलोक कहता है ।


आलोक :- और तुम दोनो बेकार । 



गुना और चतुर एक साथ कहता है। 



दोनो एक साथ :- क्या...! बेकार..! 



गुना कहता है ।



गूणा :- चलो यार अब यही सही पर तुम दोनो जा कहाँ रहे हो ? 



आलोक गुना और चतुर को नीलू की और इशारा करके कहता है । आलोक :- वहा देखो निलू काका जो हमारा पिछा कर रहा है । इससे  कैसे पिछा छुड़ाया जाय ये सोचो ।



 एकांश, चतुर और गुना तीनो नीलू की और देखता है जो केला वाला से केला खरीदने का बहाना कर रहा था । ताकी उस पर कोई शक ना करे । 


चतुर कहता है । 


चतुर :- हमारा पिछा कर रहा है पर क्यों ? 


आलोक कहता है । 


आलोक :- हमारा नहीं मेरा ।


 आलोक के इतना कहने पर तीनो आलोक की और देखने लगता है ।







गुना कहता है।


गूणा :- क्यूं ..।  अब तूने ऐसा क्या कांड कर दिया जिसके लिए उन्हें तेरे पिछे निलु को काका को लगा रखा है। 

गुणा इतना बोलकर हंसने लगता है ।

आलोक कहता है ।



आलोक :- बड़े पापा ने नीलू काका को मेरा ध्यान रखने के लिए पिछे लगाया है । ताकी उन्हें पता चल के लिए मैं कहां हूँ  और क्या कर रहा हूं । 



चतुर कहता है । 



चतुर :- पर ये जान कर तेरा बड़े पापा क्या करेंगे । कहीं तेरा किसी लड़की के साथ गलत रिस्ता तो नहीं है ना भाई ? जिसे जाने के लिए अंकल ने नीलू काका को तेरे पिछे लगा दिया है ।



 आलोक गुस्से से कहता है । 


आलोक :- हा है ना । 

चतुर उत्सुकता से पुछता है । 


चतुर :- बता ना कौन है... कौन है...! 



आलोक जवाब देता है । 



आलोक :- क्यूं तेरे साथ है ना साले --- मेरा अवेध संबंध । जबसे तेरे साथ मेरा अवेध संबध बना है तबसे बड़े पापा ने निलु काका को मेरे पिछे लगा दिया है । और मैं तबसे बहोत परेशान हूँ । ना तु होता ना तेरे साथ मैं होता ऐर ना ही ये निलु काका मेरा पिछा करता ।


ये सुनकर चतुर आलोक से कहता है । 


चतुर :- क्या यार तू भी । कुछ भी बोल रहा है । मुझे लगा था के सच मे तु किसी के प्यार मे है इसिलिए तेरे बड़े पापा ने निलु काका को तेरे पिछे लगाया है । इसलिए तेरे से पूछा । पर तु है की ..।


आलोक के इस तरह से कहने पर गुना चतुर को तबसे घुरे जा रहा था । तभी चतुर देखता है के गुना उसे ही  घुर रहा है । चतुर गुना से कहता है। 


गूना :- अरे अब तुझे क्या हो गया । तू मुझे ऐसे क्यों घुर रहा है बे । 




गुना अपना मुह बनाते हुए कहता है ।



गूना :-  छी......!



चतुर हैरानी से कहता है । 


चतुर :- क्या छी..! 


गूना :- साले आलोक ने जो कहा उसके लिए छी: । कैसा लड़का है रे तु । इस भोले भाले मासुम आलोक को भी फंसा लिया ---और उसके साथ तुने ---- तुने उसके साथ अवेध संबंध बना लिया । 


गुना की बात पर एकांश और आलोक हंसने लगता है । तो चतुर दोनो से कहता है ----

चतुर :- हां हां ..... हसो सालो ----- और हसो । हस हस के मर जाओगे एक दिन दैखना ।

गुना अब भी मुह बनाके चतुर की और दैख रहा था । चतुर के कंधे पर हाथ रखने जाता है तो गुना दुर हटते हूए कहता है -----


गुना :- अबे हट , दुर रह मुझसे ।


चतुर भिन्नाकर कहता है -----


चतुर :- भोस----- ( गाड़ी को रोकते हूए ) साले वो मजाक कर रहा है , मजाक को नही समझता -------और साले तू मुझे ऐसे घुर रहा है , जैसे मैने सच मे कुछ गलत किय हो ।


गुना कहता है ----


गुना :- कुछ किया नही , बहोत गलत किया , अवेध संबंध बनाया है तुने । मुझे तो सोच कर भी सर्म आ रहा है । के मैं तेरे साथ इतने दिनो तक था और तु पता नही मेरे साथ रहकर मेरे बारे मे भी क्या क्या सौचता रहा होगा ।


आलोक और एकांश दोनो को दैखकर हसते जा रहा था और गुना चतुर की अच्छी खासी क्लास ले रहा था , चतुर गुना को फिर से समझाते हूऐ कहता है ।
 

चतुर :- दैेख गुना तु मेरा दोस्त है ---- है के नही ।


गुना गुस्से से कहता है ------

गुना :- हां ---- पर पता नही अब रहूँगा के नही ।


चतुर फिर कहता है ------


चतुर :- अरे ऐसा कुछ नही है मेरे भाई । आलोक ने तो मजाक से कहा था । साले तब से समझा रहा हूँ तुझे और तु है के समझ नही रहा है ---- ठिक है तुझे लगता है के मेरा और आलोक का अवेध संबंध है । तो ठिक है मैं मानता हूँ के है । मैने मान लिया के मेरा और आलोक का चक्कर चल रहा है --- अब खुश ।

चतुर गुना को समझाते समझाते थक गया था । और फिर चतुर इतना बोलकर वहां पर बैठ जाता है । 


 गुना फिर कहता है । 


गुना :- मुझे तुमसे ऐसी उम्मेद नहीं थी । 



गुना और चतुर की बात पर एकांश और आलोक हंसने लगता है ।  


चतुर गुना से कहता है । 


चतुर :- हां हसो और लो पुरा मजा है । 

चतुर गुना से कहता है -----


चतुर : - ये क्या है रे । तेरे पास दिमाग विभाग कुछ है ---- या यूं ही खाली है । तुझे तबसे समझा रहा हूँ के साले मेरा और आलोक का ऐसा कुछ भी नही है । मैं शुद्ध लड़का हूँ , मेरे अंदर एक लड़के का ही फिलिंग है ।



चतुर गुना से कहता है।


चतुर :- और तू...! और तु आगर दुबारा से ये  छी, ये सब करेगा तो साले तेरा मुह तौड़ दूगां । 


 आलोक चतुर की बात बिच में ही कट कर कहता है ।

आलोक चतुर को Frustrate होता दैख कहता है -----

आलोक :- बस बस बहोत हो गया । अरे कमीनों पहले मेरी पूरी बात तो सुन लिया करो । मैं पुरा टाइम अपने ऑफिस में रहता हूं । और खाली टाइम मैं तुम्हारे साथ बिताता हूँ । तो इसी चक्कर में... मैं घर हफ्ते में एक या दौ बार ही जाता हूं। इसिलिए बड़े पापा मेरा खबर लेने के लिए निलु काका को मेरे पिछे
लगाया है । ताकी बड़े पापा को मेरा हाल चाल का खबर मिल सके । और गुना तु , इतने सालो से हमारे साथ हो पर फिर भी तुम्हें हमारे बारे नही पता । थोड़ा सा मजाक क्या किया तुम तो Serious हो गये ।



गुना चतुर के कांधे में हाथ रख कर कहता है। 


गुना :- ओहो.....! तो ये बात है । 



चतुर गुना का हाथ अपने कंधे से हटाके कहता है। 



चतुर :- हट बे ...! पागल कहीं का । बिना सोचे समझे कुछ भी सोच लेता है । साले तेरे साथ बचपन से हूँ कभी ऐसा कुछ तुझे लगा है के मैं वैसा हूँ । 




गुना चतुर को देख कर हल्की मुस्कान देता है और कहता है ।



गुना :- नाराज क्यो हो रहा है बे. माफ कर दे यार , गलती हो गई , मुझे लगा के तु सच मे छक्का ----


गुना इतना बोलकर रुक जाता है तब चतुर गुस्से से कहता है ।


चतुर :- क्या बोला बे छक्क....... साले रुक तु ।

इतना बोलकर चतुर गुना को मारने जाता है । तो गुना चतुर को रोकते हूए कहता है -----

गुना :- रुक जाओ , रुक जाओ ----- बस यही दोस्ती यही प्यार।



To be continue.......107