Shrapit ek Prem Kahaani - 13 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 13

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 13

आलोक :- पुराणों मे तो मैने भी पड़ा है के दैत्य , राक्षस और दानव और सभी अपनी लोक मे रहते है , और ये भी पड़ा था के देवता और दैत्यों मे एक संधी हूआ था के वो फिर कभी पृथ्वी वासियों को परेशान नही करेगें और ना ही मारेगें ।

एकांश कहता है ---

एकांश :- अगर ऐसी बात है तो ये इस युग मे कैसे आ गया और सबको मार क्यू रहा है । और फिर आज जो मैने दैखा और सुना .....!

एकांश इतना बोलकर चुप हो जाता है ।
आलोक कहता है ---

आलोक :- तुझे याद है एकांश बचपन मे इस जंगल के बारे मे हमने कितनी ही कहानियां सुना करते थे । के इस जंगल मे बहोत सारे रहस्य है , यहां पर देत्य , परी , देवता सभी घुमने आता है । एक समय था जब लोग जंगल मे घुमने जाते थे पर जबसे कुम्भन आया तब से लोग इसका नाम लेने से भी डरते है ।


वही पर रामु चाय वाला एकांश और आलोक की बात को बड़े गौर से सुन रहा था , और फिर अपनी कंपकंपाती आवाज मे कहता है ---


रामु :- बेटा , तुम लोग सुंदर वन के बारे मे बात कर रहे हो ना , कही तुम लोग उसके अंदर तो नही चले गए थे ? तुम्हारी बातें सुनकर तो ऐसा ही लग रहा है । पर बेटा अब दोबारा उस जंगल के अंदर कभी मत जाना क्योकी वहां मौत रहती है मौत ।

एकांश रामु से बड़े उत्साह से पूछता है ----

एकांश :- आप जानते हो क्या काका , उस जंगल के बारे मे ?


रामु :- हां बेटा , कभी मैं भी वहां पर जाया करता था । जो भी उस जंगल मे गया दूसरे दिन उसका कटा सर जंगल के बाहर मिलता था ।  


आलोक कहता है ----


आलोक :- काका क्या आप सच मे उस जंगल के अंदर गए हो ?


आलोक की बात को सुनकर रामु चाय वाला अपना डरावना चेहरा आलोक के सामने लाकर एक डरावनी हसी देता है ------


रामु :- हा हा ...... 

रामु के उपर के तिन दांत नही थे जिससे उसका चेहरा और डरावना लग रहा था आलोक और चतुर उसका चेहरा दैखकर डर जाता है तभी चतुर कहता है ----


चतुर :- यार चाचा , आप अपने चेहरे के एक्सप्रेसन से हमे डराओ मत यार । ऐसे ही आज हम सब की फटी पड़ी है और उपर से आपका ये डरावना चेहरा आपकी कहानी से भी ज्यादा डारावनी है । और आप हो के एक्सप्रेसन दिये जा रहा हो । आपसे जितना पूछा है आप बस इतना ही बताओ ।


रामु अपना डरावना चेहरा और डरावना हसी देकर चतुर पास चला जाता है चतुर डर के मारे गुना का हाथ जोर से पकड़ लेता है । रामु कहता है ------


रामु :- एक दिन मैं और कुछ लोग जंगल के अंदर लकड़ियां चुनने के लिए थे । हमलोग बड़े आराम से जंगल मे लकड़िया चुन रहे थे के तभी अचानक से एक भयानक गर्जना होती है ।


रामु की बात को सुनकर चतुर और बाकी सभी की डर से हालत खराब थी । 


रामु अपनी बात जारी रखते हूए कहता है ----

रामु :- उस भयानक आवाज को सुनकर हमारे रोंगटे खड़े हो गये । हम ये दैखने के लिए के वहां पर कौन था उसी दिशा मे आगे बड़ने लगे । तब हमने दैखा के विशाल शरीर वाला देत्य जिसकी आंखे अंगार की तरह लाल थी वो अपने गोद मे किसी लकड़ी को उठा रखा था जो उसकी बेटी थी और वो बेहोश थी । और उस देत्य के आंखौ मे आंशु थे । उसे दैखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो बहोत बड़ा दुख: मे था । वो जोर जोर से रो रहा था और कह रहा था । 


---" " मैं सर्वनाश कर दूगां सबका , महा विनाश करुगां मैं -- पृथ्वी मे अब प्रलय आएगी । पुत्री मैं तेरे मृत्यु का बदला अवश्य लूगां । सर्वनाश कर दूगां सबका मैं "" !




 रामू अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं ---


रामु :- वो देत्य कुम्भन था। उसकी गर्जना इतनी भयानक थी के किसी का भी रुह कांप उठे। हम लोग सब वहां से भाग निकले उसके बाद कुम्भन ने गांव में अलग अलग भेष बनार उस आदमी और मणि की खोज में घुमने लगा और कुम्भन जिससे भी मणि के बारे मे पुछता, नहीं बताने वाले लोगों को ले जाता है और फिर दुसरे दिन आदमी का कटा सर गांव के दोनो और बरगद के पेड़ मे से कभी इस पेड़ के निचे तो कभी उस पेड़ के रख देता था । तब हमारे मालिक इंद्रजीत ने एक साधु बाबा के मदद से कुंभन को इसी जंगल में कैद कर दिया। तुम लोगो ने तो देखा ही होगा के जंगल के दोनो और बरगद है पेड़ है जिसके निचे एक लाल सिला रखी है। वो जंगल के इधर भी है और उदयपुर तरफ भी है। उसी रक्षा कवच के कारन वो कुंभन इसी जंगल में है। तबसे वो देत्य इस जंगल से बाहर नहीं आता। 


एकांश कुछ सौचता है और कहता है----

एकांश :- अच्छा...! तो रक्षा वह कवच है।

 एकांश आलोक से पुछता है ---


एकांश :- क्या तुम लोगो ने कभी कुम्भन को देखा है? 


आलोक कहता है---- 


आलोक :- नहीं यार। .. पर ये जरूर देखा हुँ के जो लोग उस जंगल पर गए थे , दिसरे दिन उसका सर गांव के उसी पेड़ के निचे मिला था। 



एकांश हैरानी से पुछता है ---

एकांश :- क्या......! पर वो किस श्राप की बात कर रहा था और वो गांव वालो से किस मणी के बारे मे पुछता था। जो किसी गांव वाले को नहीं पता। 


आलोक कहता है ---


आलोक :- नहीं पता यार पर सुनने में आया है के उसकी बेटी को किसी इंसान के कारण कोई श्राप लगी है जिसे उसकी बेटी की मौत हो गई और कुंभन अपने बेटी को फिर से जिंदा करने के लिए किसी मणि की तलाश में है। अब वो मणि कहां और किसके पास है ये नहीं पता । 


तभी चाय वाला फिर अपनी डरावनी कंपकपाती हुई आवाज में कहता है ----


रामु :- बिल्कुल सही सुने हो बेटा तुमने। 


तभी गुना अपवे दिल पर हाथ रखकर कहता है ---


गुना :- ओह...! ये बुड़ोऊ ... तो आज मेरी जान लेकर ही मानेगा । क्या चाचा तुम अब चुप नहीं रह सकते। चाचा जितनी भयानक ये कहानी है उससे भी ज्यादा तुम्हारा एक्सप्रेसन डरावनी है । अगर बिना एक्सप्रेसन के बताना है तो बताओ वरना चुप रहो ।


चाय वाला गुना की बात सुनकर चुप हो जाता है।


 एकांश कहता है ---


एकांश :- पर यार ये कौन कर सकता है। क्या इस बात का पता चला? और उसकी बेटी को किसने और क्यो मारा ?


 आलोक कहता है----

आलोक :- पता नहीं यार पर वो जो भी है उसने ऐसा करके अच्छा नहीं किया। क्यूंकी औलादे सबकी प्यारी होती है चाहे वो इंसान की हो या देत्य । पर अगर मेरे बस में होता तो मैं उस मणि को ढुंढ कर उस देत्य तक जरूर पँहूचा देता ताकी वो अपनी बेटी को बचाकर अपने लोक वापस चला जाए । 


एकांश आलोक से फिर पूछता है---


एकांश :- क्या गांव वाले में से किसी ने उस इंसान या उस मणि को ढुंढने की कोशिस नहीं किया।


 आलोक जवाब देता है ---


आलोक :- किया था यार....! तेरे पापा और कुछ गांव वालो ने मिलकर सबके घर जाकर पुछा पर किसी को भी उस मणि के बारे मे नहीं पता था।


To be continue.....151