Shrapit ek Prem Kahaani - 8 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 8

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 8




वर्शाली के इतने करीब आने से एकांश का दिल जौर जौर से धड़क रहा था । एकांश बस वर्शाली के दैखे जा रहा था । फिर वर्शाली अपना हाथ एकांश के सिने पर रख देती है । वर्शाली के छुने से एकांश के पुरे शरीर पर बिजली जैसी करंट दौड़ जाती है और दिल धड़कन अब और तेज हो जाती है ।






वर्शाली कहती है ।
 
वर्शाली :- ये क्या एकांश जी आपका दिल तो जौर जौर से धड़क रहा है ।




एकांश कुछ कहता इससे पहले वर्शाली कहती है ।

वर्शाली :- आज के लिए इतना ही एकांश जी । मैं कल फिर आपसे मिलूगीं ।



इतना बोलकर वर्शाली एकांश के सामने अपना घुमाती है जिससे एकांश को बहोत निदं आने लगता है और वो वर्शाली के बाहो मे सो जाता है । वर्शाली एकांश से कहती है ।




वर्शाली :- अगर मेरी विडंबना नही होती एकांश जी तो मैं आपको अपने ये दूर कभी जाने ही नही देती । ऐसे ही अपने बाहों मे रखती ।

एपिसोड -4 दक्षराज के पास सांतक मणी ।


दुसरे दिन सुबह के 8:00 बज रहे थे । राजनगर गांव में दक्षराज अपनी हवेली के अंदर बैठा था । दक्षराज के हाथ में नीले रंग के चमकती हुए एक मणि थी । जिसे दक्षराज देखे जा रहा था । दक्षराज उस मणि को अपने चेहरे के पास ला कर कहता है । 




दक्षराज :- बस अब और कुछ समय और इंतजार है उसके बाद ......! उसके बाद जो श्राप मुझे तेरे वजह से मुझे लगी है उससे अब तू ही मुक्ति दिलाएगा । और मुझे श्राप से मुक्ति दिलाने वाला भी अब यहा आ गया है । बेचारा डॉक्टर एकांश , उससे मुझे कुछ पुराना हिसब भी तो चुकानी है । 



इतना बोलकर दक्षराज जोर से हसने लगता है। हाहा...हाहा...हाहा...!







तभी वहा आलोक आ जाता है आलोक को दैख कर दक्षराज ने मणि को अपने चादर के अंदर छुपा लेता है । आलोक दक्षराज से बिना कुछ बात किये ही हवेली के अंदर की और चला जाता है । आलोक दक्षराज का भतीजा है । आलोक के मां और पापा 15 साल पहले एक कार दुर्घटना में दोनो की मौत हो जाती है जिसका दोषी आलोक दक्षराज को मानता है ।




 क्योंकि जिस दिन उनके कार का दुर्घटना हुआ उस दिन आलोक की मां और पापा दक्षराज से नाराज होकर घर से निकला था । क्योंकी दक्षराज घर में वेश्या को लेकर आता था । इसलिये आलोक दक्षराज से बहुत ही कम बात करता है । दक्षराज ने शादी नहीं किया इसिलिए उसे कोई संतान नहीं है । तो दक्षराज आलोक को अपना बेटे जैसा प्यार करता है । कुछ देर बाद आलोक हवेली से निकलाता है और दक्षराज से बिना बात किए वह हवेली से बाहर जाने लगता है।







तभी दक्षराज आलोक को रौकते हुए कहता हैं । 


दक्षराज :- आलोक...! बेटा कहा जा रहे हो । अभी अभी आऐ और अभी जा रहे हो । 3 दिन से तुम घर भी नहीं आए । ? कहा जा रहे हो क्या कर रहे हैं कुछ तो बताके जाओ । बेटा मुझे तुम्हारी चिंता होती है । 



दक्षराज आलोक को अपने पास बुलाता है ।


दक्षराज :- यहा आओ..! कुछ देर अपने बड़े पापा के पास भी तो बैठो । 


आलोक दक्षराज के पास आ कर बैठ जाता है ।













दक्षराज कहता है ।


दक्षराज :- बेटा तुम मुझसे और हवेली से दूर क्यों रहते हो । ये तो तुम्हारा ही हवेली है ना बेटा । तो फिर तुम यहाँ क्यों नहीं रहते।  मैं मानता हूं के उस दिन ऋतुराज और दामिनी से मेरा झगड़ा हुआ था और वो नाराज होकर यहां से चले गए पर बेटा मुझे क्या पता था के उस दिन उन दोनो के कार का एक्सिडेंट हो जाएगा । अगर मुझे ऐसा कुछ पता होता तो मैं कभी उन दौनो को यहां से जाने नहीं देता ।







इतना सुनने के बाद आलोक बिना कुछ बोले ही वहा से जाने के लिए उठ जाता है और जाने के अपने कदम बढ़ाता ही है के दक्षराज आलोक को रोकते हुए कहता है ।


दक्षराज :- रुको आलोक...!  बेटा अपने बड़े पापा से इतनी नाराजगी  ??  क्यूं आलोक ? बेटा तुम्हारे सिवा मेरा इस दुनिया में और कोई नहीं है और तुम हो के मुझे कुछ बता कर नहीं जाते ।




तभी आलोक कहता है । 

आलोक :- सच बड़े पापा...! आपको सच में पता नहीं होता के मैं कहा रहता हूँ क्या करता हूँ ।



तभी वहां निलू आ जाता है । आलोक निलु को दैख कर आलोक कहता है ।


आलोक :- अगर आपको मेरे बारे मे नही पता तो बड़े पापा आप नीलू काका से पूछ लिजिये वो तो मेरा हर समय पिछा करता है । 



आलोक नीलू की और देखना कहता है । 


आलोक :- क्यू निलु काका...? मैं ठीक कह रहा हूं ना ? ?







इधर एकांश अपने रूम में सो रहा था और एकांश को कल रात वाली बात  याद आ रही थी । तभी एकांश झट से उठ जाता है और कहता है । 


एकांश :- वर्षाली....! 



वर्षाली का नाम लेकर एकांश उठकर बैठ जाता है और अपने आपको कमरे में देखकर हैरान हो जाता है । और कहता है । 



एकांश :- मैं यहां अपने रूम में कैसे आ गया मैं तो जंगल गया था । वर्षाली के पास ! पर में यहां कैसे आया । कही उसने तो मुझे यहाँ.....??़ नहीं नहीं ये कैसे हो सकता है एक अकेली लड़की मुझे मेरे घर कैसे पहूँचा सकती है।







एकांश अपने दिमाग पर जोर लगाते हुए कहते हैं । 



एकांश :- ओह..! ये मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा है ।


 एकांश इतना सोच ही था कि तभी वहा पर सत्यजीत आ जाता है । सत्यजीत एकांश से कहता है । 


सत्यजीत :- और बेटा उठ गए तुम ? पर ये क्या बेटा तुम यहां अपने रूम में कब चले आए ।  ? 


एकांश कहता है ।


एकांश :- वही तो मैं भी सोच रहा था चाचा । पर वही याद नहीं आ रहा है।










सत्यजीत हंस कर कहता है ।


सत्यजीत :- लगता है कल रात को धापा कुछ ज्यादा ही हो गया था । इसिलिए तुम्हें कुछ याद नहीं आ रहा है । 

सत्यजीत एकांश से कहता है । 


सत्यजीत :- चलो जल्दी से फ्रेश हो जाओ । छोटी मां नास्ता के लिए बुला रही है ।


 एकांश कहता है । 



एकांश :- ठीक है चाचा आप चलिए  मैं आता हूं । 


इतना बोलकर सत्यजीत वहा से चला जाती है । एकांश अभी भी वही रात वाली बात को सोच रहा था और अपने सिर पर हाथ रख कर कहता है । 



एकांश :- उफ्फ ..! मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा है। कहीं कल को मैंने नशे में कोई सपना तो नहीं देखा । पर सपने में वो लड़की कैसे  दीखाई दे सकती है जिससे मैंने करीब 10 साल पहले देखा था । क्या करे क्या करे...! हां !  आलोक को फोन करता हूं और उसे लेकर उस जंगल मे जाकर देखता हूँ ।







इतना बोलकर एकांश अपना फोन लेता है और आलोक का नंबर डायल करता है । उधर निलू आलोक के सवाल से परेसान हो गया था । उसे  समझ में नहीं आ रहा था के आलोक ने उसे पीछा करते हुए कैसे देख लिया । आलोक फिर नीलू पर दबाव बनाकर पुछता है ।



आलोक :- क्या हुआ काका आप ऐसै चुप क्यों है ? बोलिये बड़े पापा को के मैं कहां जाता हूँ क्या करता हूँ । आप तो सब जानते हो ना ?



नीलू हकलाते हुए कहते हैं ।


निलु :- वो..मै...वो...मै आलोक बाबा । 


तभी दक्षराज आलोक से कहता है । 


दक्षराज :- " उससे क्या पूछ रहे हो " । नीलू वही करता है जो मैं करने को कहता हूँ ।










आलोक हैरानी से पुछता है ।


आलोक :- " इसका मतलब आप मेरा जासूसी करवाते हो "? 



दक्षराज कहता है । 


दक्षराज :- जासुसी नहीं बेटा तेरा ध्यान रखता हूं । क्यों मुझे तुम्हारी फ़िक्र है । अगर मैं जी रहा हूं तो सिर्फ तुम्हारे लिए क्योंकि मेरा अपना और कोई नहीं है ।


 आलोक चुप होकर दक्षराज की बात सुन रहा था। क्यूंकी उसे ये एहसास होता है की उसके मां पापा के जाने के बाद दक्षराज ने उसे अपने बेटे की तरह पाला  हैं । आलोक इतना सोच ही था कि तभी एकांश का कॉल आता है ।







आलोक फोन निकालकर कहता है । 


आलोक :- हां एकांश बोल । 


उधर फोन से एकांश आलोक को सब बोलकर सुनाता है । एकांश की बात सुनकर आलोक हेरानी से कहता है ।


आलोक :- क्या...! तू सच कह रहा है । ? तुम कन्फर्म हो ना के ये वही है ।


 एकांश कहता है ।


एकांश :- हां यार 200℅  कन्फर्म हूँ । ये वही है पर मैं घर कैसे पहूँचा ये मुझे नही पता ।



आलोक कहता है ।



आलोक :- ठीक है तू रुक में आता हूँ । 



आलोक दक्षराज की और देखता है और कहता है । 



आलोक :- वो एक काम है इसिलिए मुझे जाना होगा ।





To be continue......92