Ch 3 : जंगल की पहली पुकार
रात पूरी तरह से शमशेरपुर पर छा चुकी थी। अंधेरा बस बाहर नहीं था, बल्कि हर कोने में समा चुका था। चारों ओर गहरी, अजीब सी शांति थी। पेड़ भी जैसे डर के मारे चुपचाप खड़े थे, उनके पत्ते तक नहीं हिल रहे थे।
मीरा, रवि, राघव, यामिनी और तेजा जंगल के किनारे खड़े थे। उनके चेहरे गंभीर थे। एक टॉर्च और एक पुरानी लालटेन उनके हाथों में थीं, जिनकी हल्की रोशनी ही उनका सहारा थी।
"क्या हम सच में अंदर जा रहे हैं?" यामिनी ने डरते हुए पूछा।
"हाँ," मीरा ने धीमे लेकिन मजबूत आवाज़ में कहा। "अब हम पीछे नहीं हट सकते।"
रवि मीरा के पास आकर खड़ा हो गया। "हम सब साथ रहेंगे। कोई अकेले नहीं जाएगा।"
राघव और तेजा ने सिर हिलाकर हामी भरी। फिर सभी ने एक साथ जंगल में पहला कदम रखा — उसी जंगल में, जहाँ कभी निष्ठा खो गई थी।
जैसे ही उन्होंने अंदर कदम रखा, हवा बदल गई।
यहाँ की हवा ठंडी और भारी थी। जैसे उसमें कोई फुसफुसाहट छुपी हो। ज़मीन गीली और फिसलन भरी थी, जबकि बरसात हुए कई घंटे हो चुके थे।
"यहाँ कुछ ठीक नहीं लग रहा…" राघव ने धीरे से कहा।
"मुझे भी कुछ अजीब लग रहा है," तेजा बोला। "जैसे कोई हमें देख रहा हो।"
मीरा ने अपनी बहन की डायरी सीने से लगा ली। उसका दिल ज़ोर से धड़क रहा था, लेकिन उसके कदम शांत थे। वो बस खुद नहीं चल रही थी, उसे जैसे कोई खींच रहा था।
तभी अचानक — एक बच्चे की हँसी गूंजी।
धीमी, दूर से… लेकिन बिल्कुल साफ़।
सब रुक गए।
"तुम लोगों ने भी सुनी?" यामिनी ने धीमे से पूछा।
"बाईं ओर से आई थी," रवि ने कहा और टॉर्च उधर घुमा दी।
वहाँ एक पुराना झूला पेड़ से बंधा हुआ था — धीरे-धीरे हिल रहा था… लेकिन उस पर कोई नहीं बैठा था।
मीरा उसे देखकर सहम गई। "निष्ठा को झूला बहुत पसंद था। वो झूलते हुए गाना गाती थी…"
उसके कुछ कहने से पहले ही, डायरी अपने आप खुल गई — और उसमें एक गहरा, मोटा लिखा हुआ वाक्य दिखा:
> “उसे वो सब याद है जो तुम भूल गई हो।”
मीरा डर के मारे पीछे हट गई। "ये अपने आप बदल रही है…"
"चलो, आगे बढ़ते हैं," राघव बोला। "यहाँ रुकना ठीक नहीं है।"
वे आगे बढ़े। जंगल और घना होता गया, अंधेरा और गहरा।
थोड़ी देर बाद ज़मीन पर कुछ पड़ा मिला — एक लाल रिबन।
"ये निष्ठा का है," मीरा ने धीरे से कहा। "वो यही पहने थी उस दिन…"
तभी एक ठंडी हवा तेज़ी से गुज़री।
"भागो!" रवि चिल्लाया — लेकिन कोई नहीं जानता था कहाँ भागना है।
टॉर्च की रोशनी बुझ गई।
लालटेन धीमी हो गई।
और फिर…
एक चीख।
ना किसी दोस्त की।
जंगल से — लंबी, दर्द भरी, डरावनी आवाज़।
> “तुम इतनी देर क्यों कर दी…?”
मीरा के पैर जवाब दे गए।
वो गिर गई।
सारा कुछ धुंधला हो गया — पेड़, रोशनी, आवाज़ें।
अब वो अकेली थी।
ना रवि, ना यामिनी, कोई नहीं।
सिर्फ जंगल… और उसकी डायरी।
उसने ऊपर देखा — और वो वहाँ थी।
निष्ठा।
एक टूटे पेड़ के नीचे खड़ी थी। बहुत पीली, शांत। उसकी आँखें काली थीं। चेहरा भावहीन… लेकिन गहराई से भरा हुआ।
"मीरा…" वो बोली। "तू आखिर आई…"
मीरा कुछ बोल नहीं पाई। उसकी सांसें अटक गईं।
"मैंने तुझे नहीं भुलाया…"
निष्ठा ने सिर झुकाया। "लेकिन तू मुझे छोड़ गई।"
मीरा की आँखों से आँसू बहने लगे। "मुझे नहीं पता था तुझे कैसे बचाऊँ…"
तभी निष्ठा की आवाज़ बदल गई — अब वो उसकी नहीं रही। किसी और की, डरावनी, गहरी आवाज़ थी:
> “अब वो हमारी हो चुकी है।”
मीरा पीछे हट गई।
अचानक रवि ने उसका हाथ पकड़ा और उसे खींच लिया।
"भागना होगा!" उसने कहा।
जंगल हिलने लगा।
शाखाएँ टूटीं।
फुसफुसाहटें तेज़ हो गईं।
बाकी सब भागते हुए मिले — राघव, यामिनी, तेजा — सब डर में थे।
"भागो!" तेजा चिल्लाया।
सब दौड़े — पेड़ों के बीच, अंधेरे में, गिरते-पड़ते — और फिर आखिरकार गाँव की सड़क पर आ गिरे।
सन्नाटा।
सिर्फ उनकी साँसें सुनाई दे रही थीं।
लेकिन मीरा जानती थी — कुछ उनके साथ बाहर भी आया था।
वो अब भी उस आवाज़ को सुन पा रही थी…
> “ये तो बस शुरुआत थी…”
रवि ने उसका हाथ कसकर पकड़ा हुआ था। वे बाहर आ चुके थे, लेकिन कुछ ठीक नहीं लग रहा था। जैसे अब भी वो जंगल उनके अंदर था।
तेजा ज़मीन पर बैठा काँप रहा था। "वो… वो निष्ठा नहीं थी। उसकी आवाज़… अजीब थी…"
"नहीं," मीरा ने कहा। "वो सिर्फ निष्ठा नहीं थी। कोई और भी था… जो उसकी आवाज़ का इस्तेमाल कर रहा था।"
"लेकिन हमने उसे देखा, सुना," यामिनी बोली। "उसने तेरा नाम पुकारा, मीरा…"
"वो जानता है हम कौन हैं," राघव बोला। "वो सब जानता है।"
मीरा ने फिर से डायरी खोली।
अब उसमें नई लाइन दिखाई दी:
> “वो मरी नहीं… उसे ले जाया गया।”
"क्या मतलब है इसका?" रवि बोला। "उसे किसने लिया?"
तभी एक और तेज़ हवा चली — और लालटेन फिर से बुझ गई।
सब चुप हो गए।
फिर…
वो दिखाई दी।
वो फिर से वहीं खड़ी थी — पेड़ों के पास।
निष्ठा।
इस बार उसकी गर्दन टेढ़ी थी, बाल चेहरे पर, सिर्फ एक काली आंख दिख रही थी।
उसका चेहरा अब इंसानी नहीं था।
वो बस खड़ी रही — और फिर मुस्कुराई।
एक डरावनी, टेढ़ी मुस्कान।
और फिर — गायब हो गई।
"हमें यहाँ नहीं रुकना चाहिए," राघव बोला।
"तो जाएँ कहाँ?" यामिनी काँपती आवाज़ में बोली।
"नहीं," मीरा ने कहा। "अब और भागना नहीं है। हमें सच पता करना है।"
"तू अब भी वापस जाना चाहती है?" रवि चौंका।
"हाँ," मीरा ने कहा। "कल रात। पर इस बार… सीधे उस मंदिर के पास। जहाँ कोई नहीं जाता।"
"जो उस पुराने बरगद के पार है?" तेजा बोला। "कहते हैं वहाँ रोशनी भी नहीं जाती।"
मीरा ने सिर हिलाया। "वहीं कुछ छुपा है। वही जगह है… जहाँ निष्ठा गई थी… और जहाँ वो हमें बुला रहा है।"
"तो हम चलेंगे," रवि ने कहा। "पर तैयारी के साथ।"
"नमक, दीपक, जो भी हो सके… लेकर चलेंगे," राघव बोला।
जैसे ही वे गाँव की ओर वापस लौटे, जंगल के अंदर से एक हल्की सी हँसी फिर से गूंजी।
> “मीरा… तू फिर आई…”
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