Ch 5 : जो आवाज़ पीछा करती है
शमशेरपुर का मंदिर हमेशा रहस्यमय रहा है, लेकिन उस रात उसमें कुछ बदल गया था। जैसे उस प्राचीन इमारत ने सदीयों की नींद से उठकर खुद को जीवित कर लिया हो। मंदिर की दीवारों से हल्की सी कंपन उठ रही थी — जैसे वो कुछ कहना चाहती हों। बाहर का अंधेरा कुछ ज़्यादा ही गाढ़ा लग रहा था, और पेड़ों की परछाइयाँ ज़मीन पर अजीब आकृतियाँ बना रही थीं।
मीरा, रवि, यामिनी, राघव और तेजा — सब एक साथ मंदिर के अंदर खड़े थे। उनकी आँखों में डर भी था और जिज्ञासा भी। मीरा ने मंदिर की ज़मीन को छुआ, और उसके चेहरे पर एक जानी-पहचानी सी बेचैनी दौड़ गई।
“मैं यहाँ पहले भी आई हूँ,” उसने फुसफुसाते हुए कहा।
रवि ने उसकी तरफ देखा, “क्या मतलब है तुम्हारा?”
“मुझे नहीं पता, लेकिन... ये जगह मुझे पहचानती है। ऐसा लग रहा है जैसे यह मंदिर मेरी आत्मा से बात कर रहा हो,” मीरा की आवाज़ काँप रही थी।
तेजा ने सामने की दीवार पर बने चिह्नों की ओर इशारा किया — पांच त्रिकोण, जिनके बीचों-बीच एक गोल चिन्ह। “ये प्रतीक साधारण नहीं हैं,” वह बोला। “ये ‘पंच छाया तंत्र’ का हिस्सा हैं — एक प्राचीन विधि जिससे किसी आत्मा को जगाया जा सकता है।”
यामिनी की साँस रुक गई। “तो... क्या हमनें किसी आत्मा को जगा दिया है?”
“नहीं,” राघव धीरे से बोला, “वो आत्मा कभी सोई ही नहीं थी।”
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🌕 गुज़रे वक़्त की परतें
मीरा अचानक बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गई। उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन शरीर अकड़ा हुआ था। बाकी लोग उसके पास भागे, लेकिन तभी मंदिर में तेज़ हवा चलने लगी — बिना किसी खिड़की के।
मीरा अब एक सपना देख रही थी। नहीं — ये सपना नहीं था, ये स्मृति थी। मंदिर फिर से नया हो गया था — दीवारें साफ़, दीप जल रहे थे, और वहां पाँच लोग खड़े थे, जो किसी अनुष्ठान में व्यस्त थे।
उनके बीच एक छोटी सी लड़की थी — वही निश्ठा।
उसके होठों पर लाल धागे से टांके लगे थे, आँखों में आँसू थे, और ज़मीन पर बनी मुहर के बीच वह कांप रही थी।
> “तुम भूल गए थे... लेकिन मैं नहीं,” आवाज़ मीरा के मन में गूंजी।
फिर मीरा की आँखें खुल गईं, और वह चिल्ला पड़ी।
“मैंने सब देखा... उन्होंने निश्ठा को यहाँ बंद कर दिया था… इस मंदिर में!”
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🩸 डायरी का रहस्य
तेजा ने एक पुरानी डायरी निकाली — वही जो निश्ठा की मानी जाती थी। उसमें एक नया पन्ना खुला:
> “जो तुम्हें नाम से पुकारे, उस पर कभी भरोसा मत करना।”
रवि ने पन्ने को घूरा। “ये चेतावनी है।”
तभी, मंदिर की ज़मीन में कंपन हुआ और एक दरार उभर आई। उस दरार से हल्की रोशनी और एक ठंडी हवा निकली। नीचे उतरती सीढ़ियाँ दिखीं।
“ये... नीचे भी कुछ है,” यामिनी ने डरते हुए कहा।
“शायद असली रहस्य वहीं छिपा है,” राघव ने धीरे से कहा।
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🕯️ तंत्र की शुरुआत
दीयों की लौ एक-एक करके बुझने लगी। हवा में अब कुछ भारी और अशुभ घुल गया था। चारों ओर एक अजीब सी गंध फैल गई — कुछ पुरानी, सड़ी हुई चीज़ की।
तभी एक धीमी, पर साफ़ आवाज़ आई —
> “मीरा... तुम वापस आ गई...”
मीरा कांप उठी। “वो आवाज़... निश्ठा की थी।”
रवि ने उसका हाथ थामा। “वो जो भी है, हम साथ हैं।”
तेजा ने सिर झुकाया। “ये सिर्फ आत्मा नहीं है। ये शक्ति है — जिसे प्यास लगी है।”
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🔥 काली परछाईं और असली चेहरा
अचानक एक छाया मंदिर की दीवार पर उभरने लगी। बहुत लंबी, बिना चेहरा — केवल अंधेरा। उसके पीछे किसी की आँखें चमक रही थीं।
“वो सिर्फ निश्ठा की आत्मा नहीं है,” राघव ने कहा, “वो उस आत्मा से जुड़ी हर पीड़ा को साथ लेकर आई है।”
मीरा ने धीरे से कहा, “हमने गलती की थी। हमने जो भुला दिया था, उसने हमें नहीं भुलाया।”
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✋ स्पर्श और संकेत
मंदिर की ज़मीन से एक काली धूल उठी और मीरा के हाथ पर जा गिरी। उसके हाथ पर एक चिन्ह बन गया — जो किसी और जन्म का प्रतीक लग रहा था।
“ये क्या है?” रवि ने पूछा।
“ये... मेरी पहचान है,” मीरा ने कहा। “मैं ही वो हूँ, जिसे बलि के लिए लाया गया था... पिछले जन्म में।”
सभी चौंक गए। मंदिर के बीचों-बीच बना चक्र अब जल रहा था।
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📜 पांचवां संकेत
डायरी का आखिरी पन्ना हवा से पलट कर खुल गया:
> “अगर पाँचवें ने स्वीकार किया, तो रास्ता खुलेगा। लेकिन सज़ा भी साथ आएगी।”
राघव धीरे से बोला, “तो पाँचवां कौन है?”
तेजा की आंखें चौड़ी हो गईं। “मीरा…”
“नहीं,” मीरा बोली, “शायद मैं नहीं... शायद तुम!”
सबकी नजरें अब तेजा पर टिक गईं।
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🌌 सीढ़ियों की ओर
मंदिर की ज़मीन फट गई और एक भयानक सी सीढ़ी नीचे अंधेरे में जा रही थी। नीचे से किसी महिला की आवाज़ आई:
> “जो रास्ता तुमने चुना है, वो वापस नहीं जाता।”
“अब हम जा सकते हैं,” मीरा बोली, “या भाग सकते हैं… पर वो अंधेरा हमारे पीछे आएगा।”
“तो चलो सामना करते हैं,” रवि ने कहा।
पाँचों दोस्त सीढ़ियों की तरफ़ बढ़े।
सीढ़ियाँ धीरे-धीरे और गहराई में जा रही थीं। हर कदम पर अंधेरा और घना होता जा रहा था, और हवा में अब भीनी-भीनी गंध नहीं, बल्कि किसी सड़ी चीज़ की बू थी। नीचे उतरते ही उन्हें एहसास हुआ कि वे किसी और ही दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं — जहाँ समय का कोई अस्तित्व नहीं।
दीवारों पर प्राचीन संस्कृतियों की चित्रकारी थी — कुछ इंसानों की बलि, कुछ तांत्रिक अनुष्ठानों के दृश्य। हर चित्र एक कहानी कहता था, और उन कहानियों में डर छुपा था।
रवि ने धीरे से कहा, “ये सब… किसी बहुत पुराने समय के हैं। शायद इस मंदिर से भी पुराने।”
तेजा दीवारों को ध्यान से देख रहा था, “इसमें एक औरत को दिखाया गया है, जिसे रेखाओं से ढँका गया है। उसके माथे पर वही चिन्ह है जो मीरा के हाथ पर उभरा था।”
मीरा ने उस चित्र को देखा और एक गहरी साँस ली। “मुझे लगता है... ये मैं ही हूँ।”
सबकी आँखें चौड़ी हो गईं।
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🔱 रहस्यमयी दरवाज़ा
सीढ़ियों के अंत में एक विशाल पत्थर का द्वार था, जिस पर कोई ताला नहीं था — लेकिन उस पर खून के निशान थे। किसी ने या तो बाहर आने की कोशिश की थी... या अंदर जाने वालों को रोका था।
यामिनी ने डरते हुए कहा, “क्या हमें इसे खोलना चाहिए?”
राघव ने कहा, “अब हम आधे रास्ते से भी नीचे आ चुके हैं। लौटने का कोई मतलब नहीं।”
मीरा ने धीमे से दरवाज़े को धक्का दिया। वो दरवाज़ा बिना आवाज़ किए खुल गया — मानो वो उनके आने की प्रतीक्षा कर रहा हो।
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🕯️ अंधेरे में प्राचीन चेतावनी
कमरे के बीचों-बीच एक चबूतरा था, जिसके चारों ओर तांत्रिक चिह्न बने थे। और उस चबूतरे पर एक कंकाल — पूरी तरह सड़ा हुआ, लेकिन आँखों की जगह दो चमकती हुई नीली पथरीले पत्थर रखे हुए थे।
जैसे ही मीरा ने उस कंकाल के पास कदम रखा, वह अचानक हिलने लगा। सभी पीछे हट गए।
कंकाल नहीं उठा, लेकिन एक पुरानी आवाज़ हवा में गूंजने लगी — जैसे दीवारें बोल रही हों।
> "तुमने पाँचवां चुना... अब छठा उठेगा..."
मीरा काँप उठी, “छठा कौन है?”
रवि बोला, “क्या निश्ठा की आत्मा अकेली नहीं है?”
तेजा गंभीरता से बोला, “नहीं। अब तक हम सिर्फ निश्ठा के बारे में सोच रहे थे। पर शायद इस मंदिर में कोई और आत्मा भी बंद थी — एक जो उससे भी ज़्यादा शक्तिशाली है।”
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🧿 चक्रों का खुलना
कमरे में चारों ओर बनी आकृतियाँ अब चमकने लगी थीं। और बीच का चबूतरा धीरे-धीरे घूमने लगा — जैसे किसी शक्ति को जगाया जा रहा हो।
मीरा की हथेली फिर जलने लगी। उस पर बना चिन्ह अब नीला हो गया था। वो दर्द से कराह उठी।
“मुझे कुछ याद आ रहा है...” मीरा ने आँखें बंद करते हुए कहा। “मैं... एक अनुष्ठान का हिस्सा थी। मुझे बलि नहीं दी गई थी... मुझे एक द्वार की चाबी बनाया गया था।”
“इसलिए निश्ठा की आत्मा मुझे पुकार रही थी,” मीरा आगे बोली। “वो मुझे चेतावनी दे रही थी... छठे से।”
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🌫️ यात्रा आगे की
कमरे के एक कोने में एक दरार थी — और उसमें से धीमी, ठंडी हवा बह रही थी। राघव ने मशाल जलाई और देखा कि वह दरार एक सुरंग में बदल रही है।
“शायद यही रास्ता उस आत्मा तक जाता है,” उसने कहा।
मीरा ने सबकी तरफ देखा, “अगर हम आगे बढ़ते हैं, तो हमें अपने आप को भूल जाना होगा। ये रास्ता केवल सच्चाई चाहता है... झूठ, डर और पछतावे यहाँ साथ नहीं चल सकते।”
सब एक दूसरे की तरफ़ देखे — और फिर धीरे-धीरे उस सुरंग में प्रवेश किया।
जैसे-जैसे वो आगे बढ़े, मीरा के सपनों के दृश्य और स्पष्ट होते गए। उसे एक और चेहरा दिखा — एक बूढ़ा तांत्रिक, जिसकी आँखों में सिर्फ़ अंधेरा था, और जिसके चारों ओर मृत आत्माएँ मंडरा रही थीं।
“वो ही है… छठा,” मीरा ने धीमे से कहा।
रवि ने पूछा, “क्या वो जीवित है?”
“नहीं,” मीरा ने जवाब दिया, “पर उसकी आत्मा कभी मरी नहीं। उसने ख़ुद को इस मंदिर में बाँध दिया था… इस जगह को जीवित रखने के लिए।”
एकदम से सुरंग का रास्ता दो भागों में बंट गया — दायाँ रास्ता बिल्कुल शांत और ठंडा था, जबकि बायाँ रास्ता गर्म और कंपन से भरा हुआ।
तेजा ने पूछा, “कौन-सा रास्ता लें?”
मीरा ने अपनी आँखें बंद कीं और फिर धीरे से कहा, “दायाँ रास्ता।”
“क्यों?” रवि ने पूछा।
“क्योंकि… छठा बाएँ रास्ते पर हमारा इंतज़ार कर रहा है।”
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