Ch 10 : छुपा हुआ चेहरा
चार आत्माओं की मुक्ति के बाद, रहस्य अब एक ही चीज़ पर टिक चुका था — पाँचवां आत्मा कौन है? मंदिर की हवाओं में अब सन्नाटा नहीं था, बल्कि हर दीवार जैसे फुसफुसा रही थी। मीरा, रवि, यामिनी, राघव और तेजा जब मंदिर लौटे, तो वातावरण पहले से भी अधिक भारी लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई अब उन्हें देख रहा हो, पर वे उसे देख नहीं पा रहे थे।
मीरा की हथेली में बना चिन्ह अब हल्का नीला नहीं बल्कि गहरा काला होता जा रहा था। वह चिन्ह अब फैल रहा था — उसकी उंगलियों से होकर कलाई तक पहुँच चुका था। वह जानती थी कि कुछ बड़ा होने वाला है। लेकिन क्या? और कब?
तेजा सबसे आगे बढ़ा और मंदिर के चक्र के पास गया। पाँचों त्रिकोण अब हल्की नीली रोशनी में चमक रहे थे। पर छठा स्थान अब भी खाली था। तभी दीवारों पर से कुछ शब्द उभरने लगे — जैसे किसी ने उन्हें ताजगी से उकेरा हो:
> "पाँच में से एक अब भी जीवित है। छठा जागने को तैयार है।"
यामिनी ने कांपते स्वर में कहा, "क्या इसका मतलब है कि पाँचवां आत्मा अब भी हमारे बीच है?"
रवि ने मीरा की ओर देखा। "क्या यह आत्मा किसी में समाई हो सकती है? जैसे किसी इंसान के भीतर?"
मीरा चुप रही, लेकिन उसकी नज़र अब राघव पर टिक गई थी। वह खुद नहीं जानती थी क्यों, पर उसके मन में अचानक एक शक उभरा — ऐसा शक जो बेबुनियाद नहीं था।
तेजा बोला, "हमें दर्पण कक्ष फिर से देखना होगा। शायद वहाँ हमें कोई सुराग मिले।"
🔍 दर्पण कक्ष की वापसी
पाँचों फिर से उस पुराने दर्पण कक्ष में पहुँचे जहाँ आत्माएँ पहली बार प्रकट हुई थीं। चार दर्पण अब बिल्कुल साफ़ हो चुके थे — उनमें नीली चमक थी, जो आत्माओं की शांति दर्शा रही थी। लेकिन पाँचवां दर्पण अब भी धुँधला था।
मीरा धीरे से उस दर्पण के पास गई और अपनी हथेली आगे की। दर्पण पर हल्का-सा कंपन हुआ, और अचानक उसमें एक चेहरा उभरा — अधूरा, अस्पष्ट, लेकिन उसकी आँखें जानी-पहचानी थीं।
“ये… ये चेहरा मैं जानती हूँ,” मीरा ने कहा।
रवि बोला, "किसका है?"
मीरा ने जवाब नहीं दिया। वह खुद उलझन में थी। तभी तेजा ने उसकी हथेली पकड़ी। “तुम कुछ महसूस कर रही हो न?”
“हाँ,” मीरा बोली। “जैसे ये आत्मा मुझे बुला रही हो… जैसे मुझे जानती हो।”
⚠️ बदलता व्यवहार
मंदिर से लौटते समय राघव का व्यवहार कुछ अजीब था। वह बहुत शांत था, और जब भी मीरा या यामिनी कुछ बोलतीं, वह गहराई से उनकी बातें सुनता और तुरंत नज़रें फेर लेता।
तेजा ने धीरे से रवि से कहा, “क्या तुमने देखा कि राघव पहले जितना सहज नहीं है?”
रवि ने सिर हिलाया। “हाँ। और उसका चेहरा… जैसे वो कुछ छुपा रहा हो।”
मीरा अब और चुप नहीं रह सकती थी। “राघव,” उसने कहा, “क्या तुमने कभी ऐसा सपना देखा है जिसमें तुम एक अनजान भाषा में कुछ बोलते हो और तुम्हारे सामने एक बच्ची बैठी होती है?”
राघव अचानक ठिठक गया। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
“हाँ…” उसने बहुत धीमे स्वर में कहा। “वो सपना कई बार आता है… और वो बच्ची… उसका मुँह सिला होता है।”
तेजा तुरंत बोला, “मीरा, ये वही दृश्य है जो निश्ठा के बलिदान के समय था।”
मीरा राघव की ओर बढ़ी। “तुम ही हो… पाँचवां आत्मा।”
राघव पीछे हट गया। “नहीं… मैं नहीं जानता…”
पर उसकी आँखों का रंग अब बदलने लगा था। उसकी आवाज़ गूंजने लगी थी — दो स्वर एक साथ। एक राघव का, और दूसरा… किसी पुराने युग का।
> “मैंने सोचा था तुम मुझे कभी नहीं पहचान पाओगी, मीरा… पर तुमने कर दिखाया।”
सभी पीछे हट गए।
🌑 आत्मा का पुनर्जागरण
अब राघव का शरीर एक अजीब सी ऊर्जा से घिर गया था। उसके चारों ओर काली लपटें उठ रही थीं, और ज़मीन पर वह छठा त्रिकोण धीरे-धीरे चमकने लगा।
"मैंने अनुष्ठान तोड़ा था, हाँ," आत्मा ने कहा। "लेकिन मैं अकेला नहीं था। छठा मेरी आत्मा से भी अधिक शक्तिशाली है। और अब वह जागने वाला है।"
मीरा ने चिल्ला कर कहा, “तुम्हें फिर से रोका जाएगा!”
पर राघव — या कहें आत्मा — हँसने लगी। “अब बहुत देर हो चुकी है।”
अचानक मंदिर का फर्श कांप उठा। दीवारें फटने लगीं। चक्र के बीचों-बीच अब एक गहरा काला छेद बनने लगा था — जैसे वहाँ से कोई और दुनिया बाहर आने वाली हो।
🧿 प्रकाश और शक्ति
मीरा की हथेली अब पूरी तरह से चमक रही थी। चार आत्माओं की शक्ति, जो पहले मंदिर में लौटी थीं, अब उसके शरीर में प्रवाहित हो रही थीं। उसकी आँखें नीली हो गईं।
तेजा ने कहा, “मीरा! अब सिर्फ़ तुम उसे रोक सकती हो!”
मीरा ने चक्र के बीच हाथ फैलाया और मंत्रों का उच्चारण शुरू किया। हर शब्द के साथ हवा तेज़ होती गई, परछाइयाँ पीछे हटने लगीं, और काले छेद से उठती शक्ति कम होने लगी।
राघव चिल्लाया, “नहीं! ये मेरी नियति है!”
पर मीरा अब शक्ति बन चुकी थी। उसकी ऊर्जा मंदिर को घेरे थी।
एक तेज़ प्रकाश फूटा, और राघव का शरीर ज़मीन पर गिर पड़ा — बेहोश, शांत।
🌕 अध्याय का अंत
तेजा ने धीरे से कहा, “वो अब भी जीवित है… पर आत्मा निकल चुकी है।”
मीरा ने मंदिर की ओर देखा। “अभी अंत नहीं हुआ है। छठा अब जागेगा — और हमें उससे पहले तैयार होना होगा l "
सभी की निगाहें मंदिर के चक्र पर टिक गईं — जहाँ अब छठा चिन्ह धीरे-धीरे प्रकट हो रहा था…
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